भक्ति का दीप जीवन में जलाना चाहिए । इससे हमारा मानव जीवन कृतार्थ होता है और प्रभु प्रसन्न होते हैं । मानव जीवन की अंतिम उपलब्धि भक्ति ही है । जीवन का सबसे बड़ा पुरुषार्थ भक्ति है । एक संत एक कथा सुनाते थे । एक राजा ने अपने तीन पुत्रों को सौ - सौ स्वर्ण मुद्रिकाएं दी और कहा कि अपने-अपने महल को भर दो । एक ने शराब पी कर मुद्रिकाएं खत्म कर दी , दूसरे ने शहर के कचरे से महल को भर दिया और तीसरे ने दीपक जलाकर पूरा महल प्रकाश से भर दिया । राजा ने तीसरे बेटे से प्रसन्न होकर उसे युवराज नियुक्त किया । अध्यात्म की दृष्टि से देखें तो राजा प्रभु हैं और संतानें हम सब हैं । महल हमारा शरीर है । पहले राजकुमार की तरह कुछ लोग खाओ-पियो और मौज करो की जिंदगी में अपना जीवन व्यर्थ कर देते हैं । दूसरे राजकुमार की तरह कुछ संसार की व्यर्थ गंदगी से अपना जीवन भर देते हैं । पर तीसरे राजकुमार की तरह लायक व्यक्ति भक्ति के दीपक से अपने जीवन को जगमगा कर उसे सफल कर लेता है ।
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