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Showing posts from 2023

46. भक्त के बल प्रभु

भक्त के बल प्रभु होते हैं । तात्पर्य यह है कि भक्तों के संकल्प में प्रभु का बल युक्त हो जाता है । भक्त अपने बल से हार भी जाए पर प्रभु के बल से जीत जाता है । एक ब्राह्मण के घर बच्चे जन्म के बाद जीवित नहीं रहते थे । श्री अर्जुनजी से जब उस ब्राह्मण ने निवेदन किया तो श्री अर्जुनजी ने उसे वचन दिया कि अगले बच्चे को बचाने का दायित्व उनका है और अगर वे ऐसा नहीं कर पाए तो अग्नि में प्रवेश कर जाएंगे । जब बच्चे के जन्म का समय आया तो श्री अर्जुनजी, जो धनुर्विद्या में पारंगत थे, उन्होंने एक रक्षा कवच अपने बाणों से उस ब्राह्मण के घर के ऊपर बना दिया । बच्चा जन्मा और मर गया । श्री अर्जुनजी सोचते रह गए कि काल, वायु कोई भी इस कवच में प्रवेश नहीं कर सकता, फिर बच्चा कैसे मर गया ? वे अग्नि में प्रवेश की तैयारी करने लगे । तभी उनके रक्षक प्रभु श्री कृष्णजी आ गए । प्रभु ने श्री अर्जुनजी को कहा कि तुमने बच्चे को बचाने के लिए पूरा बल नहीं लगाया । श्री अर्जुनजी को सम झा ते हुए प्रभु बोले कि भक्तों का बल भगवान होते हैं । प्रभु ने श्री अर्जुनजी को कहा कि तुमने प्रतिज्ञा करने से पहले और कवच बनाने से पहले मुझे याद

45. प्रभु को रिझाना

प्रभु भाव और प्रेम से रीझ जाते हैं । प्रभु को रिझाने में प्रेम की अनिवार्यता होती है । प्रभु किसी सांसारिक पदार्थ, धन इत्यादि से नहीं रिझते । अगर हम सांसारिक पदार्थ, धन भी प्रभु को निवेदन करते हैं तो प्रभु उसके पीछे छिपे प्रेम भाव को देखते हैं । एक भक्त था जो रोज एक पुष्प प्रभु के मंदिर में पुजारीजी को प्रभु के श्रीकमलचरणों में चढ़ाने के लिए निवेदन करता था । बहुत दिनों से यह उसका नियम था । एक दिन रोजाना की तरह बाजार में पुष्प वाले के पास गया और सबसे मनमोहक पुष्प प्रभु को भाव से वहीं अर्पण कर उसकी कीमत चुकाने लगा । तभी एक सेठजी को भी वही पुष्प अपनी सेठानी के लिए पसंद आ गया । उन्होंने दोगुनी रकम देनी चाही । फूल का दुकानदार लालची था उसने कहा कि दोनों बोली लगा लो और जो जीत जाए वह रकम मुझे देकर फूल ले जाए । वह भक्त प्रभु प्रेम में दीवाना था और वह सेठजी अपनी पत्नी प्रेम में दीवाने थे । क्योंकि उस भक्त ने वह पुष्प भाव से प्रभु को वहीं अर्पण कर दिया था इसलिए प्रभु को अर्पित वस्तु वह छोड़ नहीं सकता था । बोली इतनी बड़ी हो गई कि भक्त को अपना खेत बेचने तक की नौबत आ गई । इतनी बड़ी बोली देखकर सेठज

44. प्रभु सबके पालनहार

हम कितने बड़े आदमी क्यों न हो पर हमारे पालनहार तो प्रभु ही हैं । बड़े-से-बड़े पद और प्रतिष्ठा वाले अमीर आदमी और एक छोटी-सी चींटी सबके पालनहार प्रभु हैं । एक सेठजी एक मंदिर के पुजारीजी से किसी बात पर रुष्ट हो गए और डांटकर उनसे कहा कि तुम्हारा पेट मंदिर में मेरे द्वारा चढ़ाए रुप यों से भरता है । पुजारीजी भक्त हृदय थे तो विनम्र होकर कहा कि प्रभु ही मेरा पेट भरते हैं और मेरा ही नहीं सभी का पेट भरते हैं । सेठजी ने कहा कि अगर मैं कमाऊ नहीं और आज जंगल में जाकर बैठ जाऊं तो क्या तुम्हारे प्रभु मेरा पेट भरेंगे ? पुजारीजी ने कहा जरूर । सेठजी एक जंगल में चले गए और पेड़ पर चढ़ गए । दोपहर में एक यात्री आया, पेड़ के नीचे सोया और विश्राम के बाद उठकर गया तो एक थैला भूलकर छोड़ गया । सेठजी यह सब देख रहे थे । उन्हें जोर से भूख लग चुकी थी क्योंकि सुबह से वे पेड़ पर बैठे थे और दोपहर का समय हो चला था । कौतूहल में पेड़ से नीचे उतर कर सेठजी ने थैला देखा तो उसमें गरमा- गरम भोजन था । सेठजी ने भोजन किया और तुरंत मंदिर में जाकर पुजारीजी के पैर पकड़े और कहा कि वे मान गए कि जगत के पालनहार प्रभु ही हैं क्योंकि उन

43. प्रभु को भक्तों की चिंता

प्रभु को अपने प्रिय भक्तों की भरपूर चिंता होती है और प्रभु उनकी रक्षा करने में और उनका मंगल करने में कोई कसर नहीं छोड़ते । बस हमें प्रभु पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए और विपत्ति में चिंता नहीं बल्कि प्रभु का चिंतन करना चाहिए । एक हवाई जहाज में बहुत यात्रियों के बीच करीब 10 वर्ष की एक नन्हीं बच्ची सफर कर रही थी । अचानक मौसम बदला और हवाई जहाज डगमगाने लगा । सभी यात्री चिंतित हो गए और प्रभु को याद करने लगे क्योंकि उन्हें मौत का डर लग रहा था । पर वह बच्ची शांत रहकर मुस्कुरा रही थी । करीब आधे घंटे तक भयंकर तूफान में डगमगाने के बाद जब पायलट ने घोषणा की कि आप हम खतरे से बाहर निकल गए तो सभी ने राहत की सांस ली । बगल में बैठे एक व्यक्ति ने उस 10 वर्षीय मुस्कुरा ती हु ई बच्ची को पूछा कि क्या तुम्हें डर नहीं लगा क्योंकि तुम तो पूरे समय मुस्कुरा रही थी । बच्ची ने बड़ा मार्मिक जवाब दिया कि हवाई जहाज चलाने वाले पायलट मेरे पिताजी हैं और उन्हें पता है कि उनकी बेटी प्लेन में बैठी है तो वह अपनी बेटी की सुरक्षा के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे । ऐसा विश्वास विपत्ति काल में हमें भी परमपिता प्रभु पर होना चाहिए

42. प्रभु प्रत्यक्ष आते हैं

वैसे तो प्रभु अपने संकल्प मात्र से ब्रह्मां डों का निर्माण, संचालन और लय कर सकते हैं पर अपने प्रेमी भक्तों के लिए उन्हें प्रत्यक्ष आना ही पड़ता है । पुराने समय की बात है । एक गाँव में एक मंदिर में श्रीराम दरबार की सेवा थी और कुछ संत वहाँ रहते थे और सेवा, कीर्तन, जप और पूजा करते थे । जो भी मंदिर में दिन भर में चढ़ावा आता था उ से बनिए की दुकान में भेजकर राशन मंगा लेते थे और प्रभु को भोग लगाकर प्रसाद रूप में उसे ग्रहण कर लेते थे । एक बार दो दिनों तक कोई चढ़ावा नहीं आया । संत बनिए की दुकान में उधार सामान लेने गए ताकि प्रभु को भोग लग जाए पर बनिए ने उधार देने से साफ मना कर दिया । संतों ने प्रभु को जल का भोग लगाया और स्वयं भी जल पीकर सो गए । रात को चार बालक बनिए के घर पहुँचे और कहा कि उनके पी तांबर में बारह स्वर्ण मोहरे हैं जिससे रोजाना वर्ष भर तक मंदिर में राशन भिजवाने की व्यवस्था करनी है । सुबह बनिया राशन और पी तांबर लेकर मंदिर पहुँचा और रात की पूरी बात बताई और क्षमा याचना की और कहा कि उसे इतना धन उसे प्राप्त हो गया है कि वह पूरे वर्ष राशन भेजता रहेगा । जब संतों ने पी तांबर देखा तो उन्

41. नया जन्म

प्रभु ने श्रीमद् भगवद् गीताजी में कहा है कि कोई दुराचारी-से-दुराचारी, पापी-से-पापी भी अगर प्रभु के समक्ष सच्चा पश्चाताप कर लेता है और अपनी गलती को जीवन में नहीं दोहराने का संकल्प भी कर लेता है तो उसका उसी शरीर में मानो नया जन्म हो जाता है क्योंकि प्रभु उसे क्षमा कर देते हैं । एक चोर ने राजमहल में चोरी की और चोरी का माल जंगल में गाढ़ दिया । राजा के सिपाही उसके पीछे लग गए । इसलिए उनसे बचने के लिए वह चोर एक मंदिर में जहाँ सत्संग चल रहा था वहाँ जाकर बैठ गया । वहाँ संत कह रहे थे कि अगर हम पाप का सच्चा पश्चाताप प्रभु के समक्ष कर लेते हैं और पाप करना भविष्य में हमेशा के लिए छोड़ देते हैं तो मानो हमारा उसी शरीर में नया जन्म हो जाता है । उस चोर ने तुरंत मंदिर में प्रभु के सामने सच्चा पश्चाताप किया और दोबारा जीवन में कभी चोरी नहीं करने का संकल्प भी किया । सत्संग विश्राम हुआ और वह बाहर निकला तो सिपा हि यों ने उससे पहचान कर पकड़ लिया और राजा के दरबार में पेश किया । राजा के पूछने पर चोर ने चोरी करने की बात से मना किया । तब राजा ने कहा कि इसके हाथ में गर्म लोहे की जंजीर रख दो अगर यह चोर हुआ तो इसका

40. प्रभु पर विश्वास

हम प्रभु पर पूर्ण विश्वास रखते हैं तो प्रभु इस विश्वास को पक्का निभाते हैं पर अगर हमा रे विश्वास में तनिक भी कमी है तो हम प्रभु की अनुकंपा से वंचित रह जाते हैं । एक संत लोहे की जंजीर बांधकर कुएं में लटक गए और गांव वालों से कहा कि उन्हें प्रभु का पक्का भरोसा है कि जंजीर टूटने पर प्रभु उन्हें कुएं में नीचे गिरने नहीं देंगे और अपनी बाहों में भर लेंगे । वे तीन दिन तक लटके रहे पर कुछ नहीं हुआ । तभी एक भोला भ क्त एक रस्सी लेकर यही प्रयोग पास के कुएं में करने गया । उसकी रस्सी लटकने पर टूट गई और प्रभु ने उसे अपनी बाहों में भर कर थाम लिया और कुएं में डूबने नहीं दिया । सारे गांव वालों ने यह दृश्य देखा । तभी संत ने प्रभु से पूछा कि मेरे लिए आप क्यों नहीं आए ? प्रभु ने बड़ा मार्मिक उत्तर दिया कि तुम लोहे की जंजीर के सहारे लटके और लोहे की जंजीर पर विश्वास किया, मुझ पर पूर्ण विश्वास नहीं किया । जबकि इस भोले भक्त ने मुझ पर पूर्ण विश्वास किया और पतली रस्सी जो उ सका भार नहीं संभल सकती थी उससे लटका, तब मुझे विश्वास के कारण तुरंत आना ही पड़ा ।

39. प्रार्थना और इंतजार

हम प्रभु से प्रार्थना करते हैं पर कृपा होने का इंतजार नहीं करते । हर प्रतिकूलता में हम बौ खला जाते हैं और भजन छोड़ देते हैं । क्या विपत्ति में हम भोजन छोड़ते हैं ? क्या बीमारी में हम सांस लेना छोड़ देते हैं ? पर प्रतिकूलता में हम भजन छोड़ देते हैं । यह कितनी बड़ी गलती है । एक संत एक कथा कहते थे कि एक भिखारी प्रभु का बड़ा सुंदर भजन गाकर भिक्षा मांगता था । एक दिन एक सेठ के घर गया और भजन गाने लगा । सेठानी बहुत दयालु थी और हाथ में रोटी लेकर भिक्षा देने जाने लगी पर रुक गई । काफी देर हो गई वह आगे नहीं गई तो एक नौकर ने पूछा कि आप रोटी हाथ में लेकर रुक क्यों गई ? सेठानी बोली कि रोटी तो मैं दूंगी, बस जल्दी दे दूंगी तो इतना प्यारा भजन पूरा सुन नहीं पाऊँगी क्योंकि वह भिखारी रोटी लेकर आगे चला जाएगा । इसलिए जब हम प्रार्थना करते हैं और प्रतिकूलता खत्म नहीं होती तो हमें भी सोचना चाहिए कि प्रभु को हमारी प्रार्थना प्यारी लग रही है और वे मन से उसे सुन रहे हैं । जैसे सेठानी से भिखारी को रोटी मिलना तो तय है वैसे ही प्रभु द्वारा हमारी प्रतिकूलता का निवारण तय है । जैसे भिखारी मीठा भजन गाकर प्रतीक्षा करता

38. प्रभु पर भरोसा

जब हम प्रभु पर भरोसा रखते हैं तो प्रभु हमारी हर अवस्था में रक्षा करते हैं । हम ही जीवन में प्रभु पर भरोसा नहीं रख पाते और विपत्ति में फं सते हैं । प्रभु हर उस जीव पर कृपा और उसकी रक्षा करते हैं जो उन पर अटूट विश्वास और भरोसा रखता है । एक संत एक कथा सुनाते थे । एक छोटी चिड़िया थी जिसने 10-12 दिनों की मेहनत से एक पेड़ पर घोंसला बनाया था । जब वह पहली बार घोंसला तैयार होने के बाद उसमें विश्राम करने के लिए गई तभी जोरदार तूफान आया और उसका घोंसला बिखर गया और उसे उड़ना पड़ा । उसने प्रभु को उलाहना दी कि प्रभु ने तूफान भेजकर उसकी 10-12 दिनों की मेहनत बेकार कर दी । तभी उसे आकाशवाणी सुनाई दी और प्रभु ने कहा कि जब तुम विश्राम के लिए घोंसले में गई तो एक सांप पेड़ पर चढ़कर तुम्हें खाने के लिए आ रहा था । इसलिए मैंने तूफान भेजा था कि घोंसला बिखर जाए और तुम उ ड़ जाओ जिससे तुम्हारी रक्षा हो जाए । चिड़िया के मन में अब प्रभु के लिए उलाहना की जगह धन्यवाद का भाव भरा हुआ था । प्रभु उन सभी जीवों की रक्षा करते हैं जो उन पर पूर्ण भरोसा और विश्वास कर ते हैं ।

37. विग्रह में प्रभु साक्षात रूप से रहते हैं

कभी भी घर की ठाकुरबाड़ी में या मंदिर में दर्शन करने जाएं तो यह नहीं सोंचे कि हम मूर्ति का दर्शन कर रहे हैं । हमें यह सोचना चाहिए कि हम साक्षात अनंत कोटी ब्रह्मांड के नायक प्रभु का दर्शन कर रहे हैं । अंग्रेजों के जमाने की बात है । राजस्थान के जयपुर स्थित एक मंदिर में यह बात विख्यात थी कि श्री ठाकुरजी की साक्षात प्रतिमा है । अंग्रेजों ने इसकी जांच करने के लिए तर्क बुद्धि से एक घड़ी का निर्माण किया जो बैटरी से नहीं बल्कि हाथ में जो धड़कन होती है जिसे पल्स कहते हैं उससे चलती थी । अंग्रेजों ने कहा कि यह घड़ी प्रभु के हाथों में पहनाई जाए और अगर यह चलने लगेगी तो हम मान लेंगे कि प्रभु साक्षात रुप से यहाँ विद्यमान हैं । घड़ी प्रभु को पहनाई गई और वह घड़ी तत्काल चलने लग गई । आज भी वह घड़ी प्रभु को पहनाई जाती है और वह घड़ी साक्षात रुप से चलती है और भक्त इसका दर्शन करते हैं जिससे उनका विश्वास पुष्ट हो जाता है कि प्रभु विग्रह रूप में साक्षात हैं । विग्रह रूप में प्रभु का जो अवतार है उसे शास्त्रों में अर्चा अवतार कहा गया है यानी वह भी प्रभु का एक अवतार ही है जो विग्रह रूप में हमने दृष्टिगोचर होता ह

36. प्रभु की इच्छा ही अपनी इच्छा

जब हम प्रभु की इच्छा में अपनी इच्छा को मिला देते हैं तो प्रभु को बहुत अच्छा लगता है और प्रभु इस से अति प्रसन्न होते हैं और हमारा कल्याण करने के लिए आतुर हो जाते हैं । एक संत एक नाव में बैठकर कहीं जा रहे थे । रास्ते में नदी में लहरें तेज हो गई और नाव भं वर में फंस गई । नाविक ने कहा कि शायद नाव डूब जाएगी तो संत ने अपने कमंडल से नदी का जल लेकर नाव में डालना शुरू कर दिया । थो ड़ी देर बाद लहरें थम गई और नाविक ने घोषणा की कि अब हम बच जाएंगे तो संत ने वापस नाव में जो कमंडल से जल डाला था उसे वापस नदी में डालना शुरू कर दिया । नाविक यह देखकर परेशान हुआ कि संत बुद्धिमान होते हुए भी विपरीत कार्य क्यों कर रहे हैं । किनारे पहुँचने के बाद नाविक ने हाथ जोड़कर संत से पूछा तो संत ने कहा कि मैं प्रभु की इच्छा का सम्मान कर रहा था । अगर प्रभु नाव को डुबाना चाहते थे तो मैं नाव में पानी भरकर उसमें सहयोग कर रहा था और जब प्रभु ने नाव को बचाने का निश्चय किया तो मैं भी जल निकालकर नाव को बचाने के लिए प्रयास करने लग गया । सारांश यह है कि संत ने अपनी इच्छा प्रभु की मर्जी से मिला ली थी जिससे वे प्रतिकूलता में भी

35. प्रभु द्वारा दी जाने वाली मजदूरी

जब हम प्रभु से अपने भजन के बदले कुछ नहीं मांगते तो प्रभु स्वयं दर्शन देकर अप नी भक्ति का दान हमें देते हैं और हमें अपना बना लेते हैं और अपनी गोद में समां लेते हैं । एक गांव में एक लड़का रहता था जो राजा से मिलना चाहता था । एक दिन उसने एक संत से इसकी तरकीब पूछी तो संत ने कहा कि नया राजमहल बन रहा है वहाँ जाकर लगन से काम करो पर मजदूरी मत लेना । वह लड़का ऐसा ही करने लग गया । एक दिन राजा अपने नए राजमहल के निरीक्षण पर आया और उसने देखा कि वह लड़का बहुत मेहनत से काम कर रहा है तो उसने अपने मंत्री से पूछा कि यह कौन है ? तो मंत्री ने बताया कि यह लड़का बिना वेतन लिए दो महीने से पूरी लगन से काम कर रहा है । वेतन देने पर यह कहता है कि राजा साहब का काम है इसलिए मुझे कुछ नहीं चाहिए । राजा ने तत्काल उसे अपने पास बुलाया और उसकी निष्ठा देखकर प्रसन्न हो गया और उसे मंत्री बना दिया । आगे उसकी और निष्ठा देखकर राजा ने अपनी पुत्री से कुछ समय बाद उसका विवाह कर दिया और उसे युवराज पद पर बैठा दिया क्योंकि राजा को कोई लड़का नहीं था, केवल एक पुत्री थी । वह लड़का निष्काम बना रहा तो वह युवराज बन गया, अगर निष्काम नहीं

34. सत्संग का प्रभाव

युवावस्था में ही जीव को सत्संग की तरफ मुड़ जाना चाहिए क्योंकि सत्संग से हमारा विवेक जागृत होता है, हमारी भक्ति प्रबल होती है और हम गलत काम करने से अपने आपको बचा लेते हैं जिससे पाप कर्म नहीं बनता । सबसे जरूरी काम जो सत्संग करता है वह हमें माया के प्रभाव से बचाता है और प्रभु से जोड़ता है । एक गांव के बाहर एक संत रहते थे जिनसे मिलने के लिए दूसरे गांव से एक अंधे संत का आना हुआ । दिनभर सत्संग हुआ और सा यं काल जब अंधे संत जाने लगे तो पहले संत ने उन्हें एक लालटेन दिया और कहा कि आप यह लेकर जाएं तो रास्ते में दिक्कत नहीं होगी । अंधे संत ने कहा कि इस लालटेन से मुझे तो कुछ भी दिखेगा नहीं तो पहले संत ने कहा कि सामने वाले को दिख जाएगा कि आप आ रहे हैं और इस तरह आपकी किसी से भिड़ंत नहीं होगी । इस छोटी-सी कथा को ऐसे समझे कि अगर हम भी सत्संग की लालटेन लेकर संसार में चलते हैं तो माया को पता होता है कि यह जीव प्रभु का है और वह हमसे दूर रहती है और हमसे माया की भिड़ंत नहीं होती । माया का प्रभाव हम पर नहीं पड़ता और हम इस मायानगरी में भी माया के प्रभाव से बचकर प्रभु की गोद में पहुँच जाते हैं ।

33. प्रभु पर विश्वास

प्रभु पर विश्वास इतना होना चाहिए कि हमें कल की चिंता नहीं होनी चाहिए और भविष्य का भय नहीं होना चाहिए । प्रभु हमारी व्यवस्था करेंगे और हमारा मंगल विधान करेंगे ऐसा पक्का विश्वास हमारे मन में होना चाहिए । हमें अपना निहित कर्म करना चाहिए पर पूरा विश्वास प्रभु पर रखना चाहिए । एक व्यापारी था जिसकी पत्नी प्रभु की भक्त थी पर व्यापारी नास्तिक था । उसने व्यापार में उल्टा सीधा काम करके सात पीढ़ियों के लिए धन जमा कर लिया था पर फिर भी उसे रात में नींद नहीं आती थी । एक दिन उसकी पत्नी ने पूछा तो उसने कहा कि सात पीढ़ियों तक की धन की व्यवस्था तो है पर मेरी आठवीं पीढ़ी का क्या होगा, इसकी मुझे चिंता है । पत्नी बड़ी भक्त स्‍वभाव की और संतोषी थी तो पत्नी ने सोचा कि इन्हें एक संत के पास ले जाया जाए । पत्नी कुछ भेंट की सामग्री लेकर अपने पति के साथ एक बहुत पहुँचे हुए संत के पास पहुँची । संत को भेंट की सामग्री अर्पण की तो संत ने अपनी पत्नी को बुलाकर पूछा कि कहाँ तक की व्यवस्था है ? संत की पत्नी ने कहा कि अभी दोपहर का समय है और शाम तक के राशन की व्यवस्था अपने पास है । तो संत ने भेंट की सामग्री लेने से मना कर

32. सत्संग का प्रभाव

हमें प्रभु की भक्ति और भजन करने की आदत जीवन में बनानी चाहिए पर हम इस के ठीक विपरीत गलत चीजों की आदत बना लेते हैं जो हमें अंत में दुःख और क्लेश देकर जाती हैं । पुराने समय की बात है । कुछ गांव के बीच स्थित पहाड़ियों में एक डाकुओं का समूह रहता था । उसके मुखिया डाकू को पकड़ने के लिए पुलिस ने इनाम निकाल रखा था । पुलिस के खुफिया विभाग को पता चला कि डाकू अभी कुछ समय बाद कुछ बड़ी वारदात करने वाले हैं । तो एक पुलिस वाला डाकू ओं को पकड़ने के लिए उस जंगल में स्थित एक मंदिर में, जहाँ की कुछ संत रहते थे, वहाँ एक संत का रूप बनाकर रहने लगा । उसका मकसद था डाकू ओं का पता लगाना पर वह सुबह, दोपहर और शाम में मंदिर में संतों द्वारा किए जाने वाले सत्संग में हिस्सा लेने लग गया क्योंकि वह संत का ढोंग कर रहा था । दो महीने में सत्संग का प्रभाव ऐसा हुआ कि वह डाकू ओं का पता तो लगा चुका था पर वह अब सच्चा संत बन गया क्योंकि उसने मन से सत्संग का श्रवण किया था । उसने डाकुओं का पता अपने विभाग को दिया और फिर हमेशा के लिए नौकरी से इस्तीफा देकर संत बनकर उसी मंदिर में अन्य संतों के साथ रहने लग गया । सत्संग के प्रभाव

31. मानव जीवन का सबसे सफल उपयोग

प्रभु ने हमें मानव जन्म दिया है इसका हमें सर्वोत्तम उपयोग करना चाहिए । हम दुनियादारी और संसार करके इसको व्यर्थ कर सकते हैं या प्रभु की भक्ति करके इसे सफल कर सकते हैं । एक राजा के दो पुत्र थे । एक दिन राजा ने एक स्वर्ण मोहर दोनों बेटों को अलग-अलग दी और कहा कि अपने महल का एक कमरा इससे भर दो । शाम तक का समय दिया । पहला बे टे ने सोचा कि एक स्वर्ण मुद्रा से पूरे कमरे में गंदे कचरे के अलावा कुछ भी नहीं आ पाएगा तो उसने मजदूर लगाकर शहर का कचरा उस कमरे में जमा करवा दिया । दूसरा बेटा एक स्वर्ण मुद्रा से घी और बत्ती लेकर आया और कमरे में उसे जला दिया । राजा शाम को आया तो देखा कि पहले बे टे के कमरे से बदबू आ रही है और वह कचरे से भरा हुआ है । दूसरे बेटे के कमरे में गया तो वह अंधेरा कमरा दीपक की रोशनी से भरा हुआ जगमगा रहा था । राजा बहुत प्रसन्न हुआ और दूसरे बेटे को गले से लगा लिया । प्रभु ने भी हमें जीवनरूपी स्वर्ण अवसर दिया है । हम दुनियादारी करके संसार के कचरे से अपना जीवन भर लेते हैं या भक्ति का दीपक जलाकर अपने जीवन में आध्यात्मिक प्रकाश कर लेते हैं, यह हमारे ऊपर है । पर जो भक्ति का दीपक जलात

30. प्रभु की कृपा की प्रतीक्षा

प्रभु की कृपा की प्रतीक्षा और इंतजार करने वाले को प्रभु की कृपा निश्चित जीवन में मिलती है । पर जो प्रभु की कृपा की प्रतीक्षा नहीं करता और निराश होकर चला जाता है वह प्रभु कृपा से वंचित रह जाता है । एक व्यक्ति रोज दफ्तर से 7 बजे घर आता और दुकान से बिस्कुट के कुछ पैकेट ला कर घर के बाहर कुत्तों को खिला देता । ऐसा नियम हो गया तो रोज 7 बजे उसके घर के बाहर कुत्ते उसका इंतजार करते । वह रोज आता और बिस्कुट खिलाता था । एक दिन दफ्तर में किसी कारणवश उसके मालिक ने उसे बहुत डांटा । उसका मूड खराब होने के कारण और विलंब भी होने के कारण वह बिस्कुट लेकर नहीं आया और देखा कि कुत्ते इंतजार में बैठे हैं । मूड खराब था इसलिए सीधे वह घर में जाकर बिस्तर पर लेट गया । रात 9 बजे उसने दरवाजा खोलकर देखा तो सभी कुत्ते चले गए थे बस एक कुत्ता इंतजार में बैठा था । उसे बहुत दया आ गई और वह घर पर उपलब्ध बिस्कुट का बड़ा डब्बा लेकर बाहर आया और इकलौते कुत्ते को जो निराश होकर नहीं गया था और प्रतीक्षा कर रहा था उसे भरपेट बिस्कुट खिला ए । इंतजार का फल मीठा होता है और प्रभु कृपा के इंतजार का फल तो असीम होता है । इंतजार और विश्व

29. असली नाम वाली माता आ गई

जब हम प्रभु और माता को पुकारते हैं तो विपत्ति में या दुविधा में प्रभु और माता स्वयं बिना इंतजार किए हुए हमारी पुकार को सुनकर आते हैं । एक हवेली में पुराने समय में एक सेठजी रहा करते थे जिनका नाम श्रीरामचंद्र था और उनकी पत्नी का नाम जानकी देवी थी । दोनों बड़े भक्त थे और बड़े भक्ति भाव से प्रभु और माता की पूजा करते थे । वे उनके बूढ़े पिता की सेवा भी करते थे । एक बार बूढ़े पिता रात में गर्मी के समय छत पर सो रहे थे कि उनको प्यास लगी और देखा कि पानी खत्म हो चुका है । वे चलने में असमर्थ थे कि चलकर रसोई से पानी ले आए, इसलिए उन्होंने अपनी बहू जानकी को आवाज लगाई । उनकी बहू जानकी गहरी नींद सो रही थी पर उन की ठाकुरबाड़ी में सेवित प्रभु श्री रामचंद्रजी और भगवती जानकी माता ने उनकी पुकार तत्काल सुनी और भगवती जानकी माता मंदिर का जल पात्र लेकर उन्हें जल पिलाने आई । जब सुबह उनकी बहू आई तो बूढ़े पिता ने कहा कि रात का पानी कितना मीठा और स्वादिष्ट था, कहाँ से लाई थी । बहु रानी ने कहा कि मैं तो रात में पानी पिलाने आई ही नहीं, मैं तो सोई हुई थी तब बहुरानी ने मंदिर के पानी की झा री देखी तो समझते देर नहीं ल

28. आस्था हो तो प्रभु स्वयं पधारते हैं

अगर हमारे मन में प्रभु के लिए आस्था है तो प्रभु स्वयं उस आस्था को पूर्ण करने के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ते । हमारी आस्था को प्रभु पूर्ण रूप से निभाते हैं और उस आस्था को मजबूत करते हैं । एक बार की घटना है । एक राहगीर का रास्ते में एक्सीडेंट हो गया । उसे काफी चोट लगी और उसने आसपास के लोगों को पुकारा पर पुलिस के डर से कोई भी नहीं आया । अंत में लहूलुहान अवस्था में उसने प्रभु को पुकारा और प्रभु स्वयं मनमोहन नाम बनाकर आ गए । प्रभु ने उसे अस्पताल पहुँचाया, खर्चे के लिए रुप ये दिए, डॉक्टर और दवाई के लिए व्‍यवस्‍था की और दो-तीन दिन सेवा करने के बाद जब वह ठीक हो गया तो प्रभु अंतर्ध्यान हो गए । इस बीच उसके बार-बार पूछने पर प्रभु ने अपना पता जरूर उसे बताया था कि मैं कहाँ रहता हूँ । तो ठीक होने के बाद जब वह व्यक्ति उस पते पर मनमोहन को खोजता हुआ गया तो एक मंदिर मिला जो कि प्रभु श्री मनमोहनजी का ही मंदिर था । अब उस व्यक्ति को समझते देर नहीं लगी कि यह तो साक्षात प्रभु ही थे जो मदद करने के लिए मनमोहन नाम बनाकर आए थे ।

27. प्रभु की गोद

विकट-से-विकट परिस्थिति में भी प्रभु पर हमारा विश्वास पूर्ण और अटल होना चाहिए । प्रभु यही देखते हैं कि विपत्ति की बेला पर जीव उन पर कितना अटूट विश्वास कायम रख पाता है । जो ऐसा कर पाते हैं उन्हें प्रभु की कृपा मिलती है और उनका बाल भी बाँका नहीं होता । श्री रामायणजी का प्रसंग है कि जब मेघनाथ की शक्ति श्री लक्ष्मणजी को लगी और प्रभु श्री हनुमानजी संजीवनी लाने गए । संजीवनी लेकर लौटते वक्त बीच में श्री अयोध्याजी पड़ी और प्रभु श्री हनुमानजी कुछ समय के लिए किसी कारण वश वहाँ रुके । उन्होंने युद्ध का समाचार सुनाया और यह बताया कि श्री लक्ष्मणजी को शक्ति लगी है और वै द्य जी ने कहा है कि सूर्योदय तक संजीवनी नहीं आने पर उनके प्रा णों पर संकट है ।  यह बात श्री लक्ष्मणजी की पत्नी भगवती उर्मिलाजी ने सुनी और एक प्रश्न किया कि अभी श्री लक्ष्मणजी किस दशा में हैं । प्रभु श्री हनुमानजी बोले कि प्रभु श्री रामजी ने अपनी गोद में उनका मस्तक रखा हुआ है और श्री लक्ष्मणजी प्रभु श्री रामजी के सामने लेटे हुए हैं । इतना सुनना था कि भगवती उर्मिलाजी हर्षित हो उठी । प्रभु श्री हनुमानजी को भी आश्चर्य हुआ कि इ

26. नास्तिक से आस्तिक

बहुत सारे लोग बचपन में नास्तिक होते हैं पर उन पर प्रभु कृपा करते हैं और उनके जीवन में वे प्रभु का कुछ ऐसा चमत्कार देखते हैं जिससे प्रभु के लिए आस्था कायम हो जाती है । आज ऐसी ही एक कथा आपको सुनाते हैं । एक शहर में एक अंग्रेजी दवाई की दुकान थी जिसका मालिक प्रभु का भक्त था । वह रोज सुबह और शाम दुकान में प्रभु की फोटो के आगे अगरबत्ती लगाता , हाथ जोड़ता और पाठ करता । यह देखकर उसका इकलौता बेटा मुस्कुराता क्योंकि वह नास्तिक था । पिता बूढ़ा हो गया था और जब अंत समय आया तो उसने अपने बेटे को बुलाया और कहा कि दुकान पर प्रभु की फोटो को देखकर हाथ जोड़ ने और अगरबत्ती लगाने का नियम मुझे वचन के रूप में दो । अपने पिता की अंतिम इच्छा मानते हुए बेटे ने वचन स्वीकार कर लिया । पिता का देहांत हो गया और बेटा दुकान संभालने लगा । वह बिना मन के पिता को दि ए वचन को निभाने के लिए प्रभु की फोटो पर रोज दो समय हाथ जोड़ता और अगरबत्ती लगा ता ।  एक बार शाम 7 बजे बिजली चली गई और दुकान में अंधेरा छा गया । तभी एक आदमी आया और डॉक्टर की पर्ची दिखाकर कहा कि मेरी बूढ़ी माँ बहुत बीमार है और डॉक्टर ने कहा है कि घंटे भ

25. प्रभु की जय

पुराने लोगों में प्रभु की जय बोलने की आदत होती थी । वे सोते-उठते, चलते-फिरते, खाते-पीते प्रभु की जय बोलते थे । यह सिद्धांत है कि प्रभु की निरंतर जय बोलने वाले के जीवन में निरंतर जय होती है । उसका मंगल-ही-मंगल होता है और कभी अमंगल नहीं होता । यह एक बहुत अच्छी आदत है जिसे जीवन में हमें भी अपनानी चाहिए । एक राजा का बड़ा बगीचा था जिसमें बहुत तरह के फल-फूल लगे थे । बहुत सारे माली काम करते थे । उसके प्रधान माली की आदत थी कि हर समय प्रभु की जय बोलता रहता था । प्रत्येक रविवार प्रधान माली टोकरी में फल लेकर राजमहल जाता और चूंकि राजा फलों का शौकीन था सो वह फल खाता था । एक रविवार माली ने सोचा कि आज कौन-सा फल लेकर जाऊं ? उसने नजर दौड़ाई और नारियल ले जाने का मन हुआ तभी उसके मुँह से निकल गया कि प्रभु की जय हो । उसका मन बदल गया और वह नारियल की जगह अंगूर की टोकरी लेकर राजमहल गया । राजा विनोदी स्वभाव का था , उस ने अपने प्रिय माली को पास बैठा लिया । वह एक अंगूर खाता और एक अंगूर विनोद में माली के माथे पर मारता । माली के माथे पर जैसे ही अंगूर लगता वह कहता प्रभु की जय हो । राजा से रहा नहीं गया और

24. प्रभु पर विश्वास

हमें हर परिस्थिति में खासकर विपत्ति की बेला में प्रभु पर विश्वास दृढ़ रखना चाहिए । इससे उस विपत्ति से प्रभु हमें निकाल लाते हैं और उस परिस्थिति पर हमारी विजय होती है । प्रभु पर विश्वास इसलिए दृढ़ होना चाहिए क्योंकि हर विपरीत परिस्थिति भी प्रभु के एक इशारे पर अनुकूल हो जाती है । एक संत अपने एक शिष्य के साथ समुद्र में जहाज में यात्रा कर रहे थे । जहाज में काफी लोग थे । अचानक जोरदार तूफान आया और जहाज पानी में डगमगाने लगा । सभी यात्री बुरी तरह से डर गए और प्रभु को पुकारने लगे । संत अपने स्थान पर शांत बैठे रहे जैसे कुछ हुआ ही नहीं । उनका शिष्य दौड़ता हुआ आया और पूछा कि आपको डर नहीं लग रहा कि जहाज तूफान के कारण डूब जाएगा । संत ने एक चाकू, जिसे वे फल सुधारने के लिए अपनी झोली में रखते थे, उसे निकाला और शिष्य के गले पर लगा दिया । संत ने अपने प्रिय शिष्य से पूछा कि क्या चाकू से तुम्हें डर नहीं लग रहा ? शिष्य बोला कि क्योंकि चाकू आपके हाथ में है और आप मेरा बुरा नहीं करेंगे इसका मुझे पक्का विश्वास है इसलिए चाकू गले में लगने पर भी मुझे डर नहीं लग रहा । संत ने चाकू गले से हटाया और कहा कि इसी तरह यह