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Showing posts from January, 2024

48. सत्संग का महत्व

काल भी प्रभु के भक्त का बुरा नहीं कर सकता । काल से संसार डरता है पर प्रभु के भक्त का काल भी आदर करता है । एक संत कथा सुनाते थे कि एक भक्त सत्संग के लिए घर से निकला । रास्ते में एक जगह ठोकर लगी, गिरा और कपड़ो में कीचड़ लग गया । वह दोबारा घर गया और कपड़े बदलकर आया । फिर वहीं पर गिरा और फिर कीचड़ से भरे कपड़े बदलने के लिए घर गया । तीसरी बार जब वहाँ पहुँचा तो एक पुरुष वहाँ पहुँचा और अपनी उंगली प क ड़कर उस व्यक्ति को सत्संग के पंडाल में ले जाकर पहुँचा दिया । भक्त ने उस पुरुष को धन्यवाद दिया और पूछा कि आप कौन हैं ? उस पुरुष ने कहा कि मैं काल हूँ और आपको लेने आया था पर जैसे ही आप सत्संग के लिए निकले प्रभु ने आपके पाप और आपकी मौत को टाल दिया । दूसरी बार आप वापस आए तो प्रभु ने आपके परिवार को पाप मुक्त कर दिया । इसलिए तीसरी बार मैं ने स्वयं आपको सत्संग तक लाकर छोड़ा नहीं तो तीसरी बार अगर आप गिरते और आप फिर सत्संग के लिए घर से कपड़े बदलकर लौटते तो प्रभु इतने दयालु है कि अब तो आपके पूरे गांव को पाप मुक्त कर देते । काल ने कहा कि सत्संग का इतना भारी महत्व है ।

47. प्रभु सर्वसामर्थ्यवान

प्रभु के यहाँ कुछ भी असंभव नहीं है । असंभव शब्द प्रभु के शब्दकोश में है ही नहीं । प्रभु सर्वसामर्थ्यवान हैं और अपने संकल्प मात्र से सब कुछ करने में पूर्ण सक्षम हैं । एक संत एक दृष्टांत देते थे कि जब माता बूढ़ी हो जाती है तो सुई के छिद्र में चश्मा लगा कर बड़ी मुश्किल से धागा डालती है । पर प्रभु अपने संकल्प मात्र से उस सुई के छिद्र से अनंत कोटि ब्रह्मांडों को पार कर सकते हैं । सुनने में यह असंभव लगेगा कि ब्रह्मांड कितने विशाल होते हैं और सुई का छिद्र कितना छोटा होता है पर प्रभु के लिए यह असंभव भी संकल्प मात्र से पूर्णतया संभव हो जाता है । इससे प्रभु के सर्वसामर्थ्यवान होने का हमें भान होता है । ऐसा कुछ भी नहीं, ऐसी कोई असंभव चीज की हम कल्पना भी नहीं कर सकते जो प्रभु मात्र संकल्प से पूर्ण नहीं कर सकते । जो संभव है उसे प्रभु संभव करते हैं, जो असंभव है उसे भी प्रभु संभव करते हैं और जो पूर्णतया और कल्पना में भी असंभव है उसे भी प्रभु संभव करते हैं । इसलिए संत कहते हैं कि असंभव-से-असंभव परिस्थिति में भी प्रभु पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिए ।