प्रभु में विश्वास और श्रद्धा रखकर प्रभु को अर्पण करके हम कुछ भी पाते हैं तो वह वस्तु प्रसाद बन जाती है और वह हमारा मंगल और कल्याण ही करती है ।
एक संत प्रभु की भक्ति करते थे और प्रभु को अर्पण करके ही कुछ खाते-पीते थे
।
एक बार गांव की एक
दुकान पर आए और कुछ नमक मांगा जिसके साथ भिक्षा में मिली रोटी का भोग प्रभु को
लगाकर उन्हें पा लेना था । सेठजी दुकान
पर नहीं थे तो उनके बेटे ने सफेद दिखने वाला एक पाउडर नमक समझकर दे दिया जो कीटाणु
मारने का जहरीला पाउडर था । संत ने
उसका प्रभु को भोग लगाया और जैसे ही पाने बैठे सेठजी आ गए । बेटा वह डब्बा बंद कर ही रहा था कि सेठजी की नजर
पड़ी, पूछा तो दंग रह गए कि मेरे बेटे ने जहरीला पदार्थ संत को दे दिया । उन्होंने तुरंत संत को कहा कि इसे मत खाएं
क्योंकि यह जहरीला है । संत ने
बड़े भाव से कहा कि अब तो वे प्रभु को भोग लगा चुके हैं और प्रसाद का त्याग नहीं
किया जा सकता ।
प्रभु के विश्वास पर
उन्होंने भोग आरोग लिया । दो-तीन
घंटे बीते और सेठजी संत के साथ-साथ रहे कि कहीं उल्टी हुई और बीमार पड़े तो तुरंत
डॉक्टर के पास ले जाएंगे पर संत स्वस्थ थे । जहाँ संत रहा करते थे जब शाम को उस मंदिर का पट खुला
तो सभी ने सेठजी के साथ देखा कि श्रीविग्रह में प्रभु का कंठ नीला हो गया है । सेठजी और संत को समझते देर न लगी कि जहर प्रभु
ने आरोग लिया और पवित्र प्रसाद संत को दे दिया । विश्वास हो तो प्रभु भक्त पर आज भी आंच नहीं आने
देते ।