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Showing posts from July, 2022

12. प्रभु का दिशा निर्देश

जो भक्त प्रभु की भक्ति करता है उसे समय-समय पर प्रभु का दिशानिर्देश और प्रभु की सहायता प्राप्त होती रहती है । किसी भी कार्य के सफल संपादन में नाम उस भक्त का होता है पर करने वाले प्रभु ही होते हैं । प्रभु कभी श्रेय लेना नहीं चाहते । अपने भक्त को श्रेय दिलाकर और जगत में उसका मान बढ़ाकर प्रभु को सबसे ज्यादा प्रसन्नता होती है । लंका में जब प्रभु श्री हनुमानजी पहुँचे तो प्रभु ने पहले से बाल्यकाल में ही उन्हें श्री अग्निदेवजी से वरदान दिला दिया था कि अग्नि उनका बाल भी बाँका नहीं कर सकेगी और प्रभु श्री हनुमानजी अग्नि के प्रभाव से सदा के लिए सुरक्षित रहेंगे । प्रभु ने ऐसा इसलिए करवाया क्योंकि प्रभु को पता था कि प्रभु श्री हनुमानजी को लंका जलाना है । लंका जलाने की प्रेरणा भी प्रभु ने अशोक वाटिका में पेड़ पर बैठे और भगवती सीता माता के दर्शन कर चुकने के बाद त्रिजटा के मुँह से स्वप्न के रूप में प्रभु श्री हनुमानजी को दी । प्रभु श्री हनुमानजी की श्री पूं छ जलाने की बुद्धि भी प्रभु ने भगवती सरस्वती माता के द्वारा रावण को दी । जब प्रभु श्री हनुमानजी की श्रीपूंछ में आग लगाई गई और प्रभु श्री हनुम

11. प्रभु के बराबर प्रभु का नाम

प्रभु के नाम जापक की इतनी महिमा होती है कि प्रभु के शस्त्र भी उसका सम्मान करते हैं और नाम जापक का अमंगल नहीं करते । प्रभु के नाम की महिमा अपार है और प्रभु के नाम में प्रभु की सारी शक्तियां समाहित है । जो - जो प्रभु कर सकते हैं प्रभु का नाम भी वह - वह कर सकता है । इससे ही हम प्रभु के नाम के सामर्थ्य का अंदाजा लगा सकते हैं । श्रीराम राज्य की एक कथा है । एक बार श्रीकाशी नरेश प्रभु श्री रामजी के दर्शन करने श्री अयोध्याजी आए । देवर्षि प्रभु श्री नारदजी प्रभु के नाम की महिमा प्रकट करना चाहते थे इसलिए उन्होंने श्रीकाशी नरेश को इसके लिए माध्यम बनाया और उनसे कहा कि राज्यसभा में सबको प्रणाम करना पर ऋषि श्री विश्वामित्रजी को न तो प्रणाम करना और न ही उनकी तरफ देखना । श्रीकाशी नरेश ने ऐसा ही किया और इससे ऋषि श्री विश्वामित्रजी क्रोधित होकर रुष्ट हो गए और प्रभु से कहा कि आज सूर्यास्त तक इस श्रीकाशी नरेश का आपको वध करना है । श्रीकाशी नरेश यह सुनते ही भागे । रास्ते में देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने उन्हें प्रभु श्री हनुमानजी की माता भगवती अंजनीजी की शरण जाने को कहा । वे तुरंत भगवती अंजनी माता की शरण