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Showing posts from April, 2022

06. भक्ति धन के आगे संसार का धन बहुत गौण

हम अपना पूरा जीवन सांसारिक धन कमाने में लगा देते हैं । हम इतना धन कमाना चाहते हैं कि हमारे लिए भी और हमारी आने वाली सात पीढ़ियों के लिए भी कम न पड़े । ऐसा करते हुए हम अपने जीवन के एक बहुत बड़े भाग का उपयोग इस हेतु कर देते हैं । प्रभु को प्रसन्न करने वाला और हमारा इक्कीस पीढ़ियों समेत उद्धार करवाने वाला भक्तिरूपी धन कमाना हम भूल जाते हैं । यह इतनी बड़ी चूक होती है कि इस चूक के कारण चौरासी लाख योनियों में फिर से हमें भ्रमण करना पड़ता है । श्री भक्तमालजी में भक्त श्री रांकाजी और भक्‍ता श्रीमति बांकाजी की कथा आती है । दोनों पति-पत्नी थे और प्रभु के परम भक्त थे । वे भक्ति से संपन्न थे पर धन से संपन्न नहीं थे । एक बार दोनों कहीं जा रहे थे तो भक्त श्री रांकाजी आगे चल रहे थे और रास्ते में उन्हें स्वर्ण मोहरें बिखरी हुई दिखी । वे भक्त थे इसलिए उनके मन में लालच नहीं आया और वे उन मुहरों पर मिट्टी डालने लगे जिससे वे ढक जाए और पीछे आ रही पत्नी की दृष्टि में नहीं आए । उन्हें डर था कि कहीं पत्नी की नियत मोहरें देखकर बदल न जाए । पत्नी ने जब देखा कि उनके पति स्वर्ण मुहरों के ऊपर मिट्टी डाल रहे हैं तो उ

05. केवल प्रभु को प्राथमिकता देना

हम जीवन में व्यापार , परिवार , शौक को प्राथमिकता देते हैं जबकि शास्त्र और संत कहते हैं कि प्राथमिकता जीवन में केवल और केवल प्रभु की होनी चाहिए । पर हमारा दुर्भाग्य होता है कि हम प्रभु को छोड़कर अन्य सभी को प्राथमिकता देते हैं । जैसे एक छोटे बच्चे को उसकी माँ द्वारा पड़ोस के बच्चे को प्यार करना अच्छा नहीं लगता वैसे ही प्रभु को भी प्रभु को छोड़कर जब हम किसी अन्य को प्राथमिकता देते हैं तो वह अच्छा नहीं लगता । श्री भक्तमालजी में भक्त श्री सेन नाईजी की कथा वर्णित है । वे भक्त श्री नामदेवजी के समकालीन थे और दोनों का नियम था कि हर एकादशी पूरी रात कीर्तन करने के लिए अपने गांव से श्रीपंढरपुर धाम जाते थे । एक बार की बात है कि दोनों भक्त अन्य भक्तों के साथ कीर्तन कर रहे थे । तभी प्रभु जो कि भक्तों से बातें किया करते थे उन्होंने भक्त श्री नामदेवजी से पूछा कि आज भक्त श्री सेन नाईजी नहीं आए क्या ? भक्त श्री नामदेवजी ने देखा कि भक्त श्री सेन नाईजी उनके ठीक बगल में कीर्तन कर रहे हैं । भक्त श्री नामदेवजी प्रभु का इशारा समझ गए कि आज भक्त श्री सेन नाईजी से कोई गलती हुई है । सुबह कीर्तन क

04. प्रभु की सेवा

हमारे घर के मंदिर में प्रभु का विग्रह होता है और हम उसकी सेवा करते हैं । सेवा करते - करते कभी हमें अपनी सेवा पर अभिमान आ जाए या लगे कि हम कितनी उत्कृष्ट सेवा कर रहे हैं तो प्रभु उस सेवा को स्वीकार नहीं करते । ऐसा नहीं हो इसलिए एक संत एक प्रसंग सुनाते थे । इस प्रसंग को बीच-बीच में पढ़ते रहना चाहिए । यह प्रसंग प्रभु श्री कृष्णजी और भगवती यशोदा माता के संदर्भ में है । श्री नंद बाबा के पास नौ लाख गौ - माताएं थी । इसमें से श्रेष्ठ नस्ल की एक लाख गौ - माताओं को उन्होंने प्रभु के लिए रखा था यानी   उनका दूध अन्य कोई काम   में नहीं लिया जाता था । एक लाख गौ - माताओं का दूध दस हजार गौ - माताओं को पिलाया जाता था । दस हजार गौ - माताओं का दूध एक हजार गौ - माताओं को पिलाया जाता था । एक हजार गौ - माताओं का दूध सौ गौ - माताओं को पिलाया जाता था । सौ गौ - माताओं का दूध दस गौ - माताओं को पिलाया जाता था । दस गौ - माताओं का दूध एक गौ - माता को पिलाया जाता था इन एक गौ - माता को पद्मगंधा गौ - माता कहा जाता था । इन पद्मगंधा गौ - माता का दूध प्रभु को पिलाने के लिए, दही, छाछ, मक्खन के लिए उपयोग में लिया जाता थ

03. भक्तों का हित करने का प्रभु का प्रण

प्रभु का प्रण है कि वे अपने भक्तों का सदा हित करते हैं । जो भक्तों के हित में होता है वही प्रभु करते हैं । कभी-कभी हम कुछ और चाहते हैं पर प्रभु कुछ और करते हैं पर यह निश्चित मानिए कि प्रभु वही करते हैं जिसमें उनके प्रिय भक्तों का हित होता है । हम अपने वर्तमान को देखकर भविष्य मांगते हैं पर प्रभु हमारे भविष्य को जानते हुए हमें वर्तमान देते हैं । श्री रामचरितमानसजी में देवर्षि प्रभु श्री नारदजी का एक प्रसंग आता है । प्रभु की माया से वे एक बार मोहित हुए और प्रभु की माया ने उन्हें मायानगरी , राजा , सुंदर राजकुमारी दिखलाई । सुंदर राजकुमारी से विवाह करने का मोह उनमें जगा और वे प्रभु के पास प्रभु जैसा रूप मांगने गए जिससे राजकुमारी मोहित होकर स्वयंवर में वरमाला उनके गले में डाल दे । एक पते की बात देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने प्रभु से की कि जिसमें उनका हित हो प्रभु वैसा करें । यह बात सुनकर प्रभु अति प्रसन्न हुए क्योंकि यह प्रभु के मन की बात थी । प्रभु ने उन्हें वानर रूप दे दिया जिसका देवर्षि प्रभु श्री नारदजी को पता नहीं चला । स्वयंवर हुआ और राजकुमारी ने उनकी तरफ देखा तक नहीं और वरमाला प्रभु क

02. मनुष्य योनि यानी मुक्ति योनि

चौरासी लाख योनियों के बाद मनुष्य जन्म मिलता है । इन चौरासी लाख योनियों में हमें जलचर, नभचर, थलचर, वनस्पति सब बनना पड़ता है । एक वृक्ष के रूप में 200 से 300 वर्ष एक ही जगह हवा गर्मी तूफान सहते हुए खड़े रहना पड़ता है और 1 दिन की उम्र वाले कीट पतंग भी बनना पड़ता है । चार करोड़ पचास हजार वर्षों तक चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करने के बाद प्रभु कृपा करके फिर मनुष्य जन्म देते हैं । मनुष्य जन्म कितना दुर्लभ है इसका हम अंदाजा लगा सकते हैं क्योंकि इसी मनुष्य जन्म में ही भक्ति के जरिए प्रभु प्राप्ति संभव है जो अन्य किसी भी योनि में संभव नहीं है । एक संत एक उदाहरण देते थे कि एक बड़ा गोलाकार कमरा है जिसमें बस बाहर निकलने का एक दरवाजा है । उस कमरे में रोशनी नहीं है और एक अंधे आदमी को उसमें छोड़ दिया गया है । अंधा आदमी एक हाथ से गोलाकार दीवार को टटोलता हुआ दरवाजा ढूँढ़ता है । जैसे ही दरवाजा आने वाला होता है उसे पीठ में जोरदार खुजली आ जाती है और वह हाथ जो दीवार पर लगा था उसे वह पीठ में खुजली करने के लिए ले जाता है । इस तरह वह दरवाजा चूक जाता है और आगे बढ़ जाता है । संत कहते हैं कि यह दरवाजा मुक्ति

01. प्रभु के दो बड़े प्रण

प्रभु ने श्रीमद् भगवद् गीताजी में अपने आश्रित का योगक्षेम वहन करने का प्रण लिया है । योगक्षेम दो शब्दों से बना है योग एवं क्षेम । योग का यहाँ अर्थ है कि प्रभु कहते हैं कि उनकी शरण ग्रहण करने वाले को जिस भी चीज की जब भी जरूरत होगी प्रभु उसे उपलब्ध करवाएंगे । क्षेम का अर्थ है कि प्रभु कहते हैं कि उसकी शरण ग्रहण करने वाले के पास जो भी है प्रभु उसकी रक्षा करेंगे । यह दोनों कितने विलक्षण प्रभु के प्रण हैं कि जब भी जिस भी चीज की उसे जरूरत होगी वह प्रभु पहुँचाएंगे और जो उसके पास है प्रभु उसकी रक्षा करेंगे । एक संत एक तीर्थ में रहने वाले पंडितजी की एक सत्य कथा सुनाते थे । एक पंडितजी नियमित रूप से मंदिर में श्रीमद् भगवद् गीताजी का पाठ करते थे और जो भी चढ़ावा आ जाता था उससे अपना घर चलाते थे । एक बार ऐसा हुआ कि तीन दिन तक कोई चढ़ावा नहीं आया और घर का चूल्हा बंद हो गया । उनकी पत्नी जो उनके जैसे श्रद्धावाली नहीं थी वह बिगड़ गई कि आपके प्रभु ऐसा योगक्षेम वहन करते हैं । पंडितजी को भी पत्नी की बात सुनकर उस समय गुस्सा आ गया और वे रात को मंदिर गए और श्रीमद् भगवद् गीताजी में लिखे योगक्षेम शब्द को