अपने जीवन रथ की बागडोर प्रभु को सौंप देनी चाहिए । इससे हमारा पूरा-का-पूरा दायित्व प्रभु का हो जाता है । प्रभु हमारे रथ की बागडोर संभाल लेते हैं तो हमें जीवन में विजयश्री मिलती है और हमारा जीवन सफल होता है ।
जो जीव सच्चा भक्त होता है वह अपने जीवन रथ की डोर प्रभु को सौंप के रखता है
।
ऐसे व्यक्ति द्वारा कभी
कोई गलत निर्णय नहीं होता । महाभारत
युद्ध का प्रसंग देखें । श्री
अर्जुनजी ने अपने रथ की बागडोर प्रभु को सौंप रखी थी । इतनी बड़ी प्रभु की नारायणी सेवा को ठुकराकर बिना
शस्त्र उठाने का प्रण किए प्रभु को श्री अर्जुनजी ने अपने पक्ष में रखा । कौरव सेना में महारथियों की फौज थी । श्री अर्जुनजी
से कहीं ज्यादा बलशाली और इच्छा मृत्यु के वरदान प्राप्त महारथी श्री भीष्म पितामह थे । गुरु द्रोणाचार्यजी से तो श्री अर्जुनजी ने धनुर्विद्या
सीखी थी, वे भी विपक्ष
में थे ।
महाबली कर्ण धर्म और
कर्म में बहुत श्रेष्ठ थे । ये सभी योद्धा हार गए और पांडवों की विजय हुई क्योंकि श्री अर्जुनजी ने युद्ध से पहले ही अपने जीवन रथ की
डोर प्रभु श्री कृष्णजी के श्रीहाथों में सौंप दी थी । हमें भी इसी तरह अपने जीवन रथ की डोर प्रभु को दे
देनी चाहिए ।
विश्वास माने जितने भी
उतार-चढ़ाव जीवन में आएंगे उसमें प्रभु का साथ होने के कारण लेश मात्र भी कष्ट
नहीं होगा और सफलता हमारे कदम चूमेगी ।