अंतकाल में प्रभु की स्मृति हो जाए तो यह सभी साधनों का फल होता है क्योंकि प्रभु स्मृति के कारण जिसका अंत सुधर गया उसका जन्म स्वतः ही सुधर गया । सभी साधन जीवनकाल में इसलिए किए जाते हैं कि अंत समय प्रभु का स्मरण हो जाए और हम जन्म-मृत्यु के चक्र से, संसार के आवागमन के चक्र से छूटकर प्रभु के श्रीधाम पहुँच जाए ।
एक संत एक कथा सुनाते थे । एक सेठजी को एक बहेलिए ने एक वैष्णव के घर में
पाला हुआ तोता बेचा । तोता हरदम राम-राम, गोविंद-गोविंद कहता था । सेठजी को तोते से
प्रेम हो गया और उन्होंने भी अनायास तोते के सामने राम-राम गोविंद-गोविंद कहने की
आदत डाल ली । ऐसा करते-करते बहुत वर्ष बीत गए । सेठजी बूढ़े हो गए । मृत्यु बेला पर सेठजी
को यमदूत दिखे तो तोता उसी समय बोल पड़ा राम-राम । सेठजी ने भी कहा राम-राम और
प्रभु के पार्षद तुरंत आ गए । प्रभु के पार्षद सेठजी को प्रभु के धाम लेकर चले गए
। यमदूतों को खाली हाथ लौटना पड़ा । अंत बेला पर प्रभु का नाम लेने का फल यह होता
है कि वह हमें प्रभु के श्रीधाम की प्राप्ति करवा देता है । इसलिए ही कहा गया है
कि नाम जप निरंतर करते रहें क्योंकि कौन-सी श्वास हमारी आखिरी होगी यह हमें भी पता
नहीं है ।