प्रभु जिसकी जैसी रुचि होती है उस अनुसार ही उसे देते हैं । किसी की संसार में रुचि होती है तो उसे संसार देते हैं पर जिसकी भक्ति में रुचि
है उसकी भक्ति परिपक्व हो, ऐसा विधान रचते हैं ।
देवों के देव प्रभु श्री महादेवजी की एक मार्मिक कथा एक संत सुनाते थे । एक बार भ्रमण करते हुए भगवती पार्वती माता के साथ प्रभु श्री महादेवजी पृथ्वीलोक आए । पहले एक कंजूस सेठ के घर साधु वेश बनाकर गए और सौ ग्राम दूध अभिषेक के लिए मांगा । सेठ ने मना कर दिया और बुरा भला कहा तो प्रभु श्री महादेवजी ने घर से बाहर आकर उसे आशीर्वाद दिया कि उस सेठ की संपत्ति सौ गुना बढ़ जाए । भगवती पार्वती माता ने आश्चर्य किया पर चुप रही । फिर प्रभु और माता साधु वेश में एक भजनानंदी गरीब व्यक्ति के पास गए । उसके पास एक गाय थी और उसकी माता थी और वह झोपड़ी में रहता था । उस गरीब ने प्रभु और माता का स्वागत किया और दूध दिया । प्रभु श्री महादेवजी बाहर आकर बोले कि इसका अपनी गाय और माता से वियोग हो जाए । अब भगवती पार्वती माता से रहा नहीं गया । उन्होंने प्रभु से पूछा कि यह कैसी श्रीलीला है । प्रभु श्री महादेवजी ने कहा कि सौ गुना धन पाकर कंजूस सेठ का सत्यानाश होगा, वह गलत आचरण और संसार के भोगों में लिप्त होकर अपना मनुष्य जीवन बर्बाद कर लेगा । पर उस भजनानंदी गरीब व्यक्ति का गैया और माता से वियोग होने पर वह पूरा-का-पूरा निश्चिंत होकर भक्ति और भजन में लग जाएगा और उसका मानव जीवन में कल्याण और उद्धार हो जाएगा । प्रभु ने कहा कि जिसकी जो इच्छा थी मैंने उसे वही दिया है । प्रभु ने आगे कहा कि जिसकी जो इच्छा होती है, मैं उसे वही देता हूँ पर उसका परिणाम उसे स्वयं भोगना पड़ता है ।