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Showing posts from March, 2023

28. आस्था हो तो प्रभु स्वयं पधारते हैं

अगर हमारे मन में प्रभु के लिए आस्था है तो प्रभु स्वयं उस आस्था को पूर्ण करने के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ते । हमारी आस्था को प्रभु पूर्ण रूप से निभाते हैं और उस आस्था को मजबूत करते हैं । एक बार की घटना है । एक राहगीर का रास्ते में एक्सीडेंट हो गया । उसे काफी चोट लगी और उसने आसपास के लोगों को पुकारा पर पुलिस के डर से कोई भी नहीं आया । अंत में लहूलुहान अवस्था में उसने प्रभु को पुकारा और प्रभु स्वयं मनमोहन नाम बनाकर आ गए । प्रभु ने उसे अस्पताल पहुँचाया, खर्चे के लिए रुप ये दिए, डॉक्टर और दवाई के लिए व्‍यवस्‍था की और दो-तीन दिन सेवा करने के बाद जब वह ठीक हो गया तो प्रभु अंतर्ध्यान हो गए । इस बीच उसके बार-बार पूछने पर प्रभु ने अपना पता जरूर उसे बताया था कि मैं कहाँ रहता हूँ । तो ठीक होने के बाद जब वह व्यक्ति उस पते पर मनमोहन को खोजता हुआ गया तो एक मंदिर मिला जो कि प्रभु श्री मनमोहनजी का ही मंदिर था । अब उस व्यक्ति को समझते देर नहीं लगी कि यह तो साक्षात प्रभु ही थे जो मदद करने के लिए मनमोहन नाम बनाकर आए थे ।

27. प्रभु की गोद

विकट-से-विकट परिस्थिति में भी प्रभु पर हमारा विश्वास पूर्ण और अटल होना चाहिए । प्रभु यही देखते हैं कि विपत्ति की बेला पर जीव उन पर कितना अटूट विश्वास कायम रख पाता है । जो ऐसा कर पाते हैं उन्हें प्रभु की कृपा मिलती है और उनका बाल भी बाँका नहीं होता । श्री रामायणजी का प्रसंग है कि जब मेघनाथ की शक्ति श्री लक्ष्मणजी को लगी और प्रभु श्री हनुमानजी संजीवनी लाने गए । संजीवनी लेकर लौटते वक्त बीच में श्री अयोध्याजी पड़ी और प्रभु श्री हनुमानजी कुछ समय के लिए किसी कारण वश वहाँ रुके । उन्होंने युद्ध का समाचार सुनाया और यह बताया कि श्री लक्ष्मणजी को शक्ति लगी है और वै द्य जी ने कहा है कि सूर्योदय तक संजीवनी नहीं आने पर उनके प्रा णों पर संकट है ।  यह बात श्री लक्ष्मणजी की पत्नी भगवती उर्मिलाजी ने सुनी और एक प्रश्न किया कि अभी श्री लक्ष्मणजी किस दशा में हैं । प्रभु श्री हनुमानजी बोले कि प्रभु श्री रामजी ने अपनी गोद में उनका मस्तक रखा हुआ है और श्री लक्ष्मणजी प्रभु श्री रामजी के सामने लेटे हुए हैं । इतना सुनना था कि भगवती उर्मिलाजी हर्षित हो उठी । प्रभु श्री हनुमानजी को भी आश्चर्य हुआ कि इ