युवावस्था में ही जीव को सत्संग की तरफ मुड़ जाना चाहिए क्योंकि सत्संग से हमारा विवेक जागृत होता है, हमारी भक्ति प्रबल होती है और हम गलत काम करने से अपने आपको बचा लेते हैं जिससे पाप कर्म नहीं बनता । सबसे जरूरी काम जो सत्संग करता है वह हमें माया के प्रभाव से बचाता है और प्रभु से जोड़ता है । एक गांव के बाहर एक संत रहते थे जिनसे मिलने के लिए दूसरे गांव से एक अंधे संत का आना हुआ । दिनभर सत्संग हुआ और सा यं काल जब अंधे संत जाने लगे तो पहले संत ने उन्हें एक लालटेन दिया और कहा कि आप यह लेकर जाएं तो रास्ते में दिक्कत नहीं होगी । अंधे संत ने कहा कि इस लालटेन से मुझे तो कुछ भी दिखेगा नहीं तो पहले संत ने कहा कि सामने वाले को दिख जाएगा कि आप आ रहे हैं और इस तरह आपकी किसी से भिड़ंत नहीं होगी । इस छोटी-सी कथा को ऐसे समझे कि अगर हम भी सत्संग की लालटेन लेकर संसार में चलते हैं तो माया को पता होता है कि यह जीव प्रभु का है और वह हमसे दूर रहती है और हमसे माया की भिड़ंत नहीं होती । माया का प्रभाव हम पर नहीं पड़ता और हम इस मायानगरी में भी माया के प्रभाव से बचकर प्रभु की गोद में पहुँच जाते हैं ।
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