Skip to main content

Posts

Showing posts from October, 2022

18. अनन्यता प्रभु को सबसे प्रिय

शास्त्रों में एक बात हर जगह प्रतिपादित है कि प्रभु के लिए अनन्यता होनी चाहिए । अनन्यता का सीधा अर्थ है कि अन्य नहीं , केवल प्रभु । अन्य को हम साथ में रखते हैं तो प्रभु हस्तक्षेप नहीं करते । भगवती द्रौपदीजी की लाज प्रभु ने बचाई । भगवती द्रौपदीजी ने प्रभु से बाद में एक बार प्रश्न किया कि जब लाज बचानी थी तो पहले क्यों नहीं आए , अंतिम अवस्था में ही क्यों आए ? प्रभु ने बड़ा मार्मिक उत्तर दिया । प्रभु बोले कि पहले तुमने मुझे पुकारा और साथ में अपने पतियों को भी पुकारा । पति कुछ न कर पाए तो मेरे साथ में श्री भीष्‍म पितामह , गुरु श्री द्रोणाचार्य और श्री कृपाचार्य और ससुर धृतराष्ट्र को भी पुकारा । फिर मेरे साथ अपने बल पर भरोसा किया , दोनों हाथों से साड़ी पकड़ कर रखी और मुँह से साड़ी दबा कर रखी । फिर एक हाथ से साड़ी छोड़ी , कुछ समय के बाद दूसरे हाथ से साड़ी छोड़ी । पर जब अंतिम जगह मुँह से पकड़ी साड़ी भी छोड़ी और मुझे अनन्य होकर पुकारा तो मैं तुरंत आ गया और वस्त्र अवतार लेकर अपने भक्‍त से लिपट गया । प्रभु ने कहा कि जब तुमने सबसे पहले पुकारा था तो मैं श्रीद्वारकापुरी में खाना खाने बैठा था

17. मृत्यु के बाद केवल भक्ति काम आएगी

मृत्यु के बाद हमारा परिवार , जमीन जायदाद , पू रा जीवन लगाकर कमाए  धन में से कुछ भी हमारे काम आने वाला नहीं है । यह सब कुछ य हीं संसार में रह जाने वाला है और हमें निराश मन से सब कुछ छोड़कर आगे की यात्रा में जाना पड़ेगा । मृत्यु के बाद जो हमारे साथ जाए गा वह हमारी उस जीवन में की हुई प्रभु की भक्ति ही है । प्रभु ने श्रीमद् भगवद् गीताजी में कहा है कि कोई जीव अपनी भक्ति की पूंजी को कभी खोता नहीं है और मृत्यु के बाद भी वह भक्ति की पूंजी उसके साथ रहती है और उसके काम आती है । एक संत कुटिया में रहते थे और प्रभु की भक्ति करते थे । उन के भजनानंदी होने की ख्याति सब तरफ फैली हुई थी । पास का एक राज्य बड़ा संपन्न था और राजा के पास खूब संपत्ति थी । उस राजा को अभिमान भी था कि इत ने युद्ध विजय करके अपने राज्य की संपत्ति और सीमा को उसने बहुत बढ़ाया है । एक बार पूरे लवाज मे के साथ भेंट सामग्री में बेशकीमती रत्‍न लेकर वह उन संत से मिलने गया । संत उस समय अपनी फटी धोती को रफू कर रहे थे । राजा हाथी पर बैठकर आया और उसे देखते ही संत भाप गए कि इसका अभिमान ही इसे यहाँ लाया है । राजा ने संत को प्रणाम किया