प्रभु ने भक्ति करने के लिए मानव जीवन दिया है ।
भक्ति कर हम अपने मानव जीवन को अंतिम जन्म बना सकते हैं और आवागमन के चक्र से
मुक्त हो प्रभु के श्रीकमलचरणों में सदैव के लिए स्थान पा सकते हैं । पर हम मानव
जीवन में सबसे जरूरी भक्ति को छोड़कर सब कुछ करते हैं और इस तरह उस जन्म को व्यर्थ
कर लेते हैं ।
एक सेठजी एक संत के शिष्य थे । सेठजी हरदम कहते
थे कि
सत्संग और भक्ति के लिए वे अपनी दैनिक दिनचर्या में समय नहीं निकाल पाते । एक बार संत
उन सेठजी को साथ लेकर सुबह भ्रमण पर गए । रास्ते में गलियों में कुत्ते, गधे, सूअर
आदि सब जानवर मिले । संत ने कहा कि ये सब भी किसी जन्म में
मानव थे और इनमें से कोई इंजीनियर था, कोई डॉक्टर था, कोई व्यापारी था और आपकी तरह
ये भी अपनी दिनचर्या में इतने व्यस्त
रहते थे कि प्रभु के लिए समय नहीं निकाल पाए । काल ने इन्हें दंड देते हुए दो पैर
से चार पैर वाला बना दिया । अब इनके पास समय-ही-समय है पर ये
आवारा घूमते हैं क्योंकि इनकी योनी में भक्ति और भजन संभव नहीं
है। भक्ति और भजन केवल मानव योनी में ही
संभव है और शास्त्रों का आदेश है कि संसार के करोड़ों कामों
को छोड़कर भी पहले प्रभु का भजन करना चाहिए । चार पैर वाले जानवरों को देखकर और
संत की बात सुनकर सेठजी पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और उन्होंने दुनियादारी को सीमित
कर प्रभु के लिए जीवन में समय निकालना तत्काल प्रभाव से प्रारंभ कर दिया ।