हम भजन और भक्ति को बुढ़ापे के लिए छोड़ देते
हैं और बचपन खेल में, जवानी धन कमाने में व्यतीत कर देते हैं और बड़ी चूक कर देते
हैं । बुढ़ापे में शरीर भजन के लिए सहयोग नहीं देता, रोगग्रस्त हो जाता है और हम
जीवन मुक्त होने का स्वर्णिम अवसर चूक जाते हैं ।
एक किसान एक पहुँचे हुए संत का शिष्य था । उसे
अभिलाषा थी कि वह बहुत धनवान बने । उसकी गुरु सेवा से संत अति प्रसन्न
थे । किसान ने एक दिन अवसर देखकर अपने धनवान बनने की बात संत को कह दी । संत ने
अपने तपोबल से एक साधारण मणि को अभिमंत्रित करके पारस-मणि बना दी और किसान को देते
हुए एक हफ्ते का समय दिया । संत ने कहा कि आज सोमवार है, अगले सोमवार सुबह में
आऊंगा और मणि ले लूंगा । तब तक जितने लोहे को तुम इस मणि से छुआ दोगे वह स्वर्ण बन
जाएगा और तुम धनवान बन जाओगे । किसान ने अपने खेत बेच दिया और प्राप्त रकम से जगह-जगह से लोहा इकट्ठा करने लगा । उसने सोचा कि जितना लोहा इकट्ठा
कर सकता हूँ छह दिन में कर लूं फिर एक साथ मणि के द्वारा सबको स्वर्ण बना लूंगा । लोहा
इकट्ठा करते-करते लालच के कारण समय का भान नहीं रहा और सातवें दिन संत आ गए । उसने
बहुत मिन्नत करी कि अब केवल एक मिनट का समय दे दें क्योंकि
मणि को लोहे के भंडार से छुआना भर है पर संत ने मणि
ले ली । किसान को बहुत दुःख हुआ कि वह स्वर्णिम अवसर चूक गया । वैसे ही हम भी मानव
जीवन में आकर स्वर्णिम अवसर चूक जाते हैं ।