हम प्रभु से क्या मांगते हैं यह महत्वपूर्ण है ।
साधारण तौर पर लोग प्रभु से संसार के सुख, पुत्र, पौत्र, आरोग्य, धन, संपत्ति मांगते
हैं । पर जिसका सत्संग के कारण विवेक जागृत हो गया है वह प्रभु से प्रभु के धाम
जाने की मांग करता है और वहाँ प्रभु की सेवा मांगता है ।
एक राजा का जन्मदिन था इसलिए वह राज्य के
कारागार में गया और सभी कैदियों से कहा कि जो चाहे मांग लो । एक कैदी बोला महीने भर
के लिए एक साबुन नहाने के लिए मिलती है उसे दो करवा दें । दूसरे कैदी ने कहा कि
ठंड में कंबल मोटी और बढ़िया मिल जाए । तीसरे ने कहा कि कारागार की जिस कोठरी में
मुझे रखा है वह गंदी है उसका रंग रोगन कर दिया जाए । राजा ने
खुशी-खुशी सब करने का आदेश दे दिया । इस तरह सब कैदी अपनी मांग रखते गए और प्रसन्न
मुद्रा में राजा सबकी स्वीकृति देता रहा । एक अंतिम कैदी बचा, वह बहुत समझदार था ।
उसकी बारी आई तो उसने मांगा कि कारागार से मुक्त कर उसे राज दरबार की सेवा में ले
लिया जाए । राजा अति प्रसन्न हुआ और उसे मुक्त करके अपने राज दरबार की सेवा में ले
लिया । फिर राजा को अन्य कैदियों ने कहा कि हमें भी मुक्त करवा दें । राजा ने कहा
कि तुमने जो मांगा मैंने दिया, अब तुम्हारी बारी खत्म हो चुकी है । ऐसे ही हम
प्रभु से संसार की वस्तुओं को मांगते हैं जो प्रभु हमें दे देते हैं । पर हमें
प्रभु से प्रभु के धाम में प्रभु की सेवा मांगनी चाहिए जो सपने में भी हम नहीं
सोचते । क्या इससे ऊँची कोई मांग हो सकती है ? जरा विचार करके देखें ।