प्रभु के शब्दकोश में असंभव शब्द ही नहीं है । प्रभु सभी से सब कुछ करा सकते हैं । इसकी एक बहुत सुंदर कथा एक संत सु ना ते थे । एक गांव में एक बुढ़िया रहती थी जो प्रभु की बड़ी भक्त थी । उसका पूरा दिन सेवा-पूजा में ही जाता था । प्रारब्धवश घर में काफी सदस्य थे और घर में गरीबी थी । कभी-कभी एक-दो दिन भोजन की व्यवस्था नहीं होती थी । एक बार ऐसा ही हुआ तो बुढ़िया ने मंदिर में सत्संग सुनने के बाद संत से कहकर घोषणा करवा दी कि प्रभु किसी को कृपा करने मदद के रूप में भेजें । एक सेठजी का मुनीम सत्संग में आया था उसने जाकर यह बात दूसरे दिन अपने सेठजी को कही । सेठजी पक्के नास्तिक थे और भगवान को नहीं मानते थे । उन्होंने मजाक करने के लिए अपने मुनीम को कहा कि खूब सारा राशन उस बुढ़िया को देकर आओ और कहना कि यह भगवान ने नहीं बल्कि शैतान ने भिजवाया है । मुनीम आज्ञा पालन करने हेतु चला गया । बुढ़िया ने राशन लिया, भोजन बनाया और सभी परिवारवालों को खिलाया । मुनीम ने कहा कि आप पूछेंगी नहीं कि राशन किसने भेजा है ? बुढ़िया ने बड़ा मार्मिक और हृदयस्पर्शी उत्तर दिया कि मेरे प्रभु ने एक शैतान को माध्यम बनाकर मेरा म...
अंतकाल में प्रभु की स्मृति हो जाए तो यह सभी साधनों का फल होता है क्योंकि प्रभु स्मृति के कारण जिसका अंत सुधर गया उसका जन्म स्वतः ही सुधर गया । सभी साधन जीवनकाल में इसलिए किए जाते हैं कि अंत समय प्रभु का स्मरण हो जाए और हम जन्म-मृत्यु के चक्र से, संसार के आवागमन के चक्र से छूटकर प्रभु के श्रीधाम पहुँच जाए । एक संत एक कथा सुनाते थे । एक सेठजी को एक बहेलिए ने एक वैष्णव के घर में पाला हुआ तोता बेचा । तोता हरदम राम-राम, गोविंद-गोविंद कहता था । सेठजी को तोते से प्रेम हो गया और उन्होंने भी अनायास तोते के सामने राम-राम गोविंद-गोविंद कहने की आदत डाल ली । ऐसा करते-करते बहुत वर्ष बीत गए । सेठजी बूढ़े हो गए । मृत्यु बेला पर सेठजी को यमदूत दिखे तो तोता उसी समय बोल पड़ा राम-राम । सेठजी ने भी कहा राम-राम और प्रभु के पार्षद तुरंत आ गए । प्रभु के पार्षद सेठजी को प्रभु के धाम लेकर चले गए । यमदूतों को खाली हाथ लौटना पड़ा । अंत बेला पर प्रभु का नाम लेने का फल यह होता है कि वह हमें प्रभु के श्रीधाम की प्राप्ति करवा देता है । इसलिए ही कहा गया है कि नाम जप निरंतर करते रहें क्योंकि कौन-सी श्वास हमारी आखि...