प्रभु ही सबका पालन करते हैं । एक धनाढ्य व्यक्ति
से लेकर एक चींटी तक का पालन-पोषण प्रभु ही करते हैं । हमें झूठा भ्रम
या घमंड नहीं पालना चाहिए कि हमारी वजह से या हमारी कमाई से हमारा परिवार चल रहा
है ।
एक नौकरी करने वाला व्यक्ति था । उसे घमंड था कि
वह कमाता है तभी घर चलता है । एक बार पत्नी के साथ बिना मन के सत्संग में गया जहाँ
संत कह रहे थे कि सबकी व्यवस्था प्रभु करते हैं । वह व्यक्ति सत्संग के बाद संत से
उलझ गया कि मेरे परिवार की व्यवस्था तो मैं स्वयं करता हूँ । पत्नी जब सत्संग के
बाद वापस घर चली तो संत ने उस व्यक्ति को रोका और कहा कि एक वर्ष के लिए बिना बताए
कहीं चले जाओ और फिर वापस आकर देखना तब पता चलेगा कि सत्य क्या है । वह व्यक्ति
बिना किसी को बताए रात को घर से चला गया । दूसरे दिन परिवार वालों ने खोजा तो वह नहीं मिला । फिर प्रभु की प्रेरणा से गांववालों ने उसके बड़े बेटे को एक सेठ
के यहाँ नौकरी पर लगा दिया । प्रभु की प्रेरणा से गांववालों ने मिलकर रकम जोड़कर
उसकी बेटी का विवाह, जो तय था, उसे अंजाम दिया । एक अन्य जमींदार ने उसके छोटे
बेटे की पढ़ाई का खर्चा प्रभु प्रेरणा से उठा लिया । एक वर्ष बाद जब वह व्यक्ति घर
वापस आया तो देखा सब कुछ पहले से ज्यादा सुचारू चल रहा है । उसका घमंड पूरी तरह से
टूट गया और उसने संत के चरणों में गिरकर प्रभु की भक्ति की दीक्षा संत से ले ली ।