काल भी प्रभु के भक्त का बुरा नहीं कर सकता ।
काल से संसार डरता है पर प्रभु के भक्त का काल भी आदर करता है ।
एक संत कथा सुनाते थे कि एक भक्त सत्संग के लिए
घर से निकला । रास्ते में एक जगह ठोकर लगी, गिरा और कपड़ो में कीचड़ लग गया । वह दोबारा
घर गया और कपड़े बदलकर आया । फिर वहीं पर गिरा और फिर कीचड़ से भरे कपड़े बदलने के
लिए घर गया । तीसरी बार जब वहाँ पहुँचा तो एक पुरुष वहाँ पहुँचा और अपनी उंगली पकड़कर उस व्यक्ति को सत्संग के पंडाल में ले जाकर पहुँचा दिया । भक्त ने उस
पुरुष को धन्यवाद दिया और पूछा कि आप कौन हैं ? उस पुरुष ने कहा कि मैं काल हूँ और
आपको लेने आया था पर जैसे ही आप सत्संग के लिए निकले प्रभु ने आपके पाप और आपकी मौत को टाल दिया । दूसरी बार आप वापस आए तो प्रभु ने आपके
परिवार को पाप मुक्त कर दिया । इसलिए तीसरी बार मैंने स्वयं आपको सत्संग तक लाकर छोड़ा नहीं तो तीसरी बार अगर आप गिरते और आप फिर
सत्संग के लिए घर से कपड़े बदलकर लौटते तो प्रभु इतने दयालु है कि अब तो आपके पूरे
गांव को पाप मुक्त कर देते । काल ने कहा कि सत्संग का इतना भारी महत्व है ।