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22. प्रभु पर विश्वास

प्रभु पर पूर्ण विश्वास होना मानव जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है । प्रभु केवल यह देखते हैं कि यह जीव संसार पर, धन पर, शक्ति पर और साधन पर विश्वास करता है या केवल मेरे पर विश्वास करता है । जो केवल प्रभु पर विश्वास करते हैं प्रभु उनका पूरा दायित्व उठाते हैं, उन्हें संकट से बचाते हैं और उनका मंगल करते हैं । हम टैक्सी में बैठते हैं तो ड्राइवर का बिना लाइसेंस देखे ही उसपर विश्वास कर उसके साथ यात्रा कर लेते हैं । हवाई जहाज में पायलट का बिना लाइसेंस देखे ही विश्वास कर हवाई यात्रा कर लेते हैं पर जब प्रभु पर विश्वास करने का समय आता है तो हम चूक जाते हैं ।

एक कस्बे में 3 वर्षों तक अकाल पड़ा । गांव वाले बहुत परेशान थे । खेती सूख गई, पीने के पानी की किल्लत हो गई । ब्राह्मणों से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि 18 दिवसीय यज्ञ कराया जाए । यज्ञ प्रारंभ हुआ । सब गांव वाले रोजाना यज्ञ में शामिल होने आते । पूर्णाहुति यानी यज्ञ के अंतिम दिन गांव का एक छोटा बालक भी यज्ञ के दर्शन करने आया पर हाथ में छाता लेकर आया । तब तक वर्षा के कोई आसार नहीं थे और धूप निकली हुई थी । गांव वालों ने बालक से मजाक में पूछा कि छाता क्यों लाए हो ? बालक गंभीरता से बोला कि यज्ञ पूरा होते ही यज्ञफल के रूप में प्रभु वर्षा करेंगे इसलिए मैं पहले से ही छाता लेकर आया हूँ । प्रभु बालक की इस बात पर और इस विश्वास पर रीझ  गए और तुरंत देवतागणों से कहा कि पूरे कस्बे में मूसलाधार वर्षा करो । यज्ञ के तुरंत बाद जोरदार वर्षा हुई और कई दिनों तक होती रही । अकाल का प्रभाव पूरी तरह से समाप्त हो गया । यह क्यों हुआ ? सिर्फ उस छोटे बालक के प्रभु में विश्वास के कारण । बड़ों को विश्वास नहीं था और वे असमंजस में थे कि धूप निकली हुई है तो वर्षा कैसे हो सकती है पर छोटे बालक को पूर्ण विश्वास था कि यज्ञ के तुरंत बाद प्रभु वर्षा करेंगे । प्रभु के राज्य में पूरा खेल ही प्रभु पर विश्वास का है इसलिए प्रभु पर सदैव अटूट विश्वास रखना चाहिए ।

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01. प्रभु के दो बड़े प्रण

प्रभु ने श्रीमद् भगवद् गीताजी में अपने आश्रित का योगक्षेम वहन करने का प्रण लिया है । योगक्षेम दो शब्दों से बना है योग एवं क्षेम । योग का यहाँ अर्थ है कि प्रभु कहते हैं कि उनकी शरण ग्रहण करने वाले को जिस भी चीज की जब भी जरूरत होगी प्रभु उसे उपलब्ध करवाएंगे । क्षेम का अर्थ है कि प्रभु कहते हैं कि उसकी शरण ग्रहण करने वाले के पास जो भी है प्रभु उसकी रक्षा करेंगे । यह दोनों कितने विलक्षण प्रभु के प्रण हैं कि जब भी जिस भी चीज की उसे जरूरत होगी वह प्रभु पहुँचाएंगे और जो उसके पास है प्रभु उसकी रक्षा करेंगे । एक संत एक तीर्थ में रहने वाले पंडितजी की एक सत्य कथा सुनाते थे । एक पंडितजी नियमित रूप से मंदिर में श्रीमद् भगवद् गीताजी का पाठ करते थे और जो भी चढ़ावा आ जाता था उससे अपना घर चलाते थे । एक बार ऐसा हुआ कि तीन दिन तक कोई चढ़ावा नहीं आया और घर का चूल्हा बंद हो गया । उनकी पत्नी जो उनके जैसे श्रद्धावाली नहीं थी वह बिगड़ गई कि आपके प्रभु ऐसा योगक्षेम वहन करते हैं । पंडितजी को भी पत्नी की बात सुनकर उस समय गुस्सा आ गया और वे रात को मंदिर गए और श्रीमद् भगवद् गीताजी में लिखे योगक्षेम शब्द को ...

04. प्रभु की सेवा

हमारे घर के मंदिर में प्रभु का विग्रह होता है और हम उसकी सेवा करते हैं । सेवा करते - करते कभी हमें अपनी सेवा पर अभिमान आ जाए या लगे कि हम कितनी उत्कृष्ट सेवा कर रहे हैं तो प्रभु उस सेवा को स्वीकार नहीं करते । ऐसा नहीं हो इसलिए एक संत एक प्रसंग सुनाते थे । इस प्रसंग को बीच-बीच में पढ़ते रहना चाहिए । यह प्रसंग प्रभु श्री कृष्णजी और भगवती यशोदा माता के संदर्भ में है । श्री नंद बाबा के पास नौ लाख गौ - माताएं थी । इसमें से श्रेष्ठ नस्ल की एक लाख गौ - माताओं को उन्होंने प्रभु के लिए रखा था यानी   उनका दूध अन्य कोई काम   में नहीं लिया जाता था । एक लाख गौ - माताओं का दूध दस हजार गौ - माताओं को पिलाया जाता था । दस हजार गौ - माताओं का दूध एक हजार गौ - माताओं को पिलाया जाता था । एक हजार गौ - माताओं का दूध सौ गौ - माताओं को पिलाया जाता था । सौ गौ - माताओं का दूध दस गौ - माताओं को पिलाया जाता था । दस गौ - माताओं का दूध एक गौ - माता को पिलाया जाता था इन एक गौ - माता को पद्मगंधा गौ - माता कहा जाता था । इन पद्मगंधा गौ - माता का दूध प्रभु को पिलाने के लिए, दही, छाछ, मक्खन के लिए उपयोग में लि...

03. भक्तों का हित करने का प्रभु का प्रण

प्रभु का प्रण है कि वे अपने भक्तों का सदा हित करते हैं । जो भक्तों के हित में होता है वही प्रभु करते हैं । कभी-कभी हम कुछ और चाहते हैं पर प्रभु कुछ और करते हैं पर यह निश्चित मानिए कि प्रभु वही करते हैं जिसमें उनके प्रिय भक्तों का हित होता है । हम अपने वर्तमान को देखकर भविष्य मांगते हैं पर प्रभु हमारे भविष्य को जानते हुए हमें वर्तमान देते हैं । श्री रामचरितमानसजी में देवर्षि प्रभु श्री नारदजी का एक प्रसंग आता है । प्रभु की माया से वे एक बार मोहित हुए और प्रभु की माया ने उन्हें मायानगरी , राजा , सुंदर राजकुमारी दिखलाई । सुंदर राजकुमारी से विवाह करने का मोह उनमें जगा और वे प्रभु के पास प्रभु जैसा रूप मांगने गए जिससे राजकुमारी मोहित होकर स्वयंवर में वरमाला उनके गले में डाल दे । एक पते की बात देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने प्रभु से की कि जिसमें उनका हित हो प्रभु वैसा करें । यह बात सुनकर प्रभु अति प्रसन्न हुए क्योंकि यह प्रभु के मन की बात थी । प्रभु ने उन्हें वानर रूप दे दिया जिसका देवर्षि प्रभु श्री नारदजी को पता नहीं चला । स्वयंवर हुआ और राजकुमारी ने उनकी तरफ देखा तक नहीं और वरमाला प्रभु क...