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Showing posts from December, 2025

84. हीरा और कांच

  हमारा दुर्भाग्य होता है कि हम अधिकतर लोगों की तरह कलियुग में प्रभु प्राप्ति का लक्ष्य, जो कि हीरा तुल्य है, उसे छोड़कर संसार के विषयों और भोगविलास में लिप्त रहते हैं । इस तरह हम अपने मानव जीवन के उद्देश्य से चूक जाते हैं । एक संत थे जिनके पास एक महिला गई जो कि बड़ी भजनानंदी थी । महिला ने संत से कहा कि मेरे पति बिल्कुल नास्तिक हैं , उनका उद्धार कैसे होगा ? संत ने युक्ति से काम लिया और कहा कि शाम को भिक्षा के लिए मैं तुम्हारे घर आऊँगा और प्रभु कृपा करेंगे तो तुम्हारे पति का मन परिवर्तित हो जाएगा । शाम को संत उस महिला के घर पहुँचे और उसके नास्तिक पति को देखते ही दंडवत प्रणाम किया । पति भौचक्का रह गया कि संत ने क्यों प्रणाम किया ? पूछा तो संत बोले कि तुम बड़े त्यागी हो इसलिए मैंने तुमको प्रणाम किया है । अपनी बात को समझाते हुए संत बोले कि मैंने तो सांसारिक भोग विलास, जो कांच तुल्य है उसका त्याग करके भगवत् प्राप्ति, जो हीरा तुल्य है उसके लिए श्रम किया है । कांच को त्यागकर ही रे को सभी पाना चाहते हैं । संत ने आगे उस नास्तिक व्यक्ति से कहा कि तुमने तो हीरा छोड़कर कांच को पाया यानी प्...