Skip to main content

Posts

Showing posts from June, 2025

78. जैसा चिंतन वैसा फल

हम जैसा चिंतन करते हैं हमारा मन भी वैसा ही बनता जाता है और हमें फल भी उसी अनुरूप मिलता है । इसलिए चिंतन सदैव भगवत् विषय का और अच्छाइयों का ही होना चाहिए तभी हमारा कल्याण और मंगल होगा । सतयुग की कथा है । एक गांव के बाहर एक साधु झोपड़ी में रहता था और एक नृत्यांगना अपने घर में रहती थी । साधु भजन और पूजन तो करता था पर नृत्यांगना के भोग-विलास, सुख-संपत्ति का चिंतन करता रहता था । साधु के मन में कई बार पछतावा होता था कि उसने विरक्ति का मार्ग लेकर गलती की और उसे भी संसार का सुख लेना चाहिए था । दूसरी तरफ नृत्यांगना रोज सोचती थी कि लोगों को रिझाने और पैसा कमाने का धंधा छोड़कर साधु की तरह अपना जीवन भजन और पूजन में लगाना चाहिए था । दोनों का जब शरीर छूटा और दोनों का हिसाब विचित्र ढंग से हुआ । क्योंकि साधु ने शरीर से भजन और पूजन किया था इसलिए गांव वालों ने उनकी समाधि बनाई । नृत्यांगना ने शरीर से बुरा कृत्य किया था तो उसका अंतिम संस्कार किसी ने नहीं किया और गिद्ध और जानवर उसके शरीर को खा गए । पर चूंकि   नृत्यांगना ने मन से भजन और पूजन का संकल्प किया था उसे मानव देह में एक भजनानंदी ब्राह्मण ...