Skip to main content

Posts

54. प्रभु ने लाज निभाई

जब हम प्रभु के प्रति समर्पित होते हैं तो कठिन-से-कठिन बेला में प्रभु हमारे साथ रहते हैं और हमारे मान की रक्षा करते हैं । एक संत एक गांव की कथा सुनाते थे । उस गांव में एक प्राचीन मंदिर था जिसमें दो पुजारी समाज की तरफ से नियुक्त थे । एक पुजारी की बेटी का विवाह तय हुआ पर विवाह सायंकाल   का था और दोपहर की पूजा के बाद पहले वृद्ध पुजारी की तबीयत खराब हो गई । उसने शाम की पूजा और सेवा का भार उस पुजारी पर छोड़ा जिसकी बेटी का विवाह उसी दिन था । वह पुजारी बड़ा भक्त था और प्रभु उसके लिए सर्वदा सर्वप्रथम थे । वह विवाह की परवाह किए बिना और घर में किसी को कुछ बताएं बिना सायंकाल   की पूजा और सेवा के लिए मंदिर में उपस्थित हो गया । सभी सेवा, पूजा और आरती बड़े चाव से की और प्रभु को शयन कराके रात दस बजे घर पहुँचा । उसने सोचा कि घर पर सब नाराज होंगे, उसे बुरा भला कहेंगे पर पत्नी ने बड़े प्रेम से गर्म भोजन परोसा । दूसरे दिन दोपहर की मंदिर की सेवा को विश्राम कर के घर आने पर पत्नी ने उसे शादी की फोटो दिखाई जो फोटोग्राफर घर देकर गया था । शादी की हर फोटो में पुजारीजी ने स्वयं को देखा । फोटो देखते ही उन्हें
Recent posts

53. भक्ति के लिए मानव जीवन

प्रभु ने भक्ति करने के लिए मानव जीवन दिया है । भक्ति कर हम अपने मानव जीवन को अंतिम जन्म बना सकते हैं और आवागमन के चक्र से मुक्त हो प्रभु के श्रीकमलचरणों में सदैव के लिए स्थान पा सकते हैं । पर हम मानव जीवन में सबसे जरूरी भक्ति को छोड़कर सब कुछ करते हैं और इस तरह उस जन्म को व्यर्थ कर लेते हैं । एक सेठजी एक संत के शिष्य थे । सेठजी हरदम कहते थे कि सत्संग और भक्ति के लिए वे अपनी दैनिक दिनचर्या में समय नहीं निकाल पाते । एक बार संत उन सेठजी को साथ लेकर सुबह भ्रमण पर गए । रास्ते में गलियों में कुत्ते, गधे, सूअर आदि सब जानवर मिले । संत ने कहा कि ये सब भी किसी जन्म में मानव थे और इनमें से कोई इंजीनियर था, कोई डॉक्टर था, कोई व्यापारी था और आपकी तरह ये भी अप नी दिनचर्या में इतने व्यस्त रहते थे कि प्रभु के लिए समय नहीं निकाल पाए । काल ने इन्हें दंड देते हुए दो पैर से चार पैर वाला बना दिया । अब इनके पास समय-ही-समय है पर ये आवारा घूमते हैं क्योंकि इ नकी योनी में भक्ति और भजन संभव नहीं है।   भक्ति और भजन केवल मानव योनी में ही संभव है और शास्त्रों का आदेश है कि संसार के करोड़ों का मों को छोड़क

52. स्वर्णिम अवसर

हम भजन और भक्ति को बुढ़ापे के लिए छोड़ देते हैं और बचपन खेल में, जवानी धन कमाने में व्यतीत कर देते हैं और बड़ी चूक कर देते हैं । बुढ़ापे में शरीर भजन के लिए सहयोग नहीं देता, रोगग्रस्त हो जाता है और हम जीवन मुक्त होने का स्वर्णिम अवसर चूक जाते हैं । एक किसान एक पहुँचे हुए संत का शिष्य था । उसे अभिलाषा थी कि वह बहुत धनवान बने । उस की गुरु सेवा से संत अति प्रसन्न थे । किसान ने एक दिन अवसर देखकर अपने धनवान बनने की बात संत को कह दी । संत ने अपने तपोबल से एक साधारण मणि को अभिमंत्रित करके पारस-मणि बना दी और किसान को देते हुए एक हफ्ते का समय दिया । संत ने कहा कि आज सोमवार है, अगले सोमवार सुबह में आऊंगा और मणि ले लूंगा । तब तक जितने लोहे को तुम इस मणि से छुआ दोगे वह स्वर्ण बन जाएगा और तुम धनवान बन जाओगे । किसान ने अपने खेत बेच दिया और प्राप्त रकम से जगह-जगह से लोहा इकट्ठा करने लगा । उसने सोचा कि जितना लोहा इकट्ठा कर सकता हूँ छह दिन में कर लूं फिर एक साथ मणि के द्वारा सबको स्वर्ण बना लूंगा । लोहा इकट्ठा करते-करते लालच के कारण समय का भान नहीं रहा और सातवें दिन संत आ गए । उसने बहुत मिन्नत करी क

51. प्रभु से मांग

हम प्रभु से क्या मांगते हैं यह महत्वपूर्ण है । साधारण तौर पर लोग प्रभु से संसार के सुख, पुत्र, पौत्र, आरोग्य, धन, संपत्ति मांगते हैं । पर जिसका सत्संग के कारण विवेक जागृत हो गया है वह प्रभु से प्रभु के धाम जाने की मांग करता है और वहाँ प्रभु की सेवा मांगता है । एक राजा का जन्मदिन था इसलिए वह राज्य के कारागार में गया और सभी कैदियों से कहा कि जो चाहे मांग लो । एक कैदी बोला महीने भर के लिए एक साबुन नहाने के लिए मिलती है उसे दो करवा दें । दूसरे कैदी ने कहा कि ठंड में कंबल मोटी और बढ़िया मिल जाए । तीसरे ने कहा कि कारागार की जिस कोठरी में मुझे रखा है वह गं दी है उसका रंग रोगन कर दिया जाए । राजा ने खुशी-खुशी सब करने का आदेश दे दिया । इस तरह सब कैदी अपनी मांग रखते गए और प्रसन्न मुद्रा में राजा सबकी स्वीकृति देता रहा । एक अंतिम कैदी बचा, वह बहुत समझदार था । उसकी बारी आई तो उसने मांगा कि कारागार से मुक्त कर उसे राज दरबार की सेवा में ले लिया जाए । राजा अति प्रसन्न हुआ और उसे मुक्त करके अपने राज दरबार की सेवा में ले लिया । फिर राजा को अन्य कैदियों ने कहा कि हमें भी मुक्त करवा दें । राजा ने कहा क

50. माया की रस्सी

हम प्रभु की भक्ति क्यों नहीं कर पाते ? क्यों प्रभु के लिए समय नहीं निकाल पाते ? क्योंकि हम संसार के मायाजाल में फंसे हुए हैं । माया ने इस संसार में हमें इस तरह भ्रमित किया है कि हम अपने आपको पूरा फंसा हुआ पाते हैं । हमारे पास संसार करने के बाद प्रभु के लिए समय ही नहीं बचता । एक संत एक कथा सुनाते थे । एक धोबी अपने गधे पर कपड़े लादकर नदी पर कपड़े धोने पहुँचा । वह गधे को बांधने की रस्सी लाना उस दिन भूल गया था । उसने सिर्फ दिखावे के लिए गधे को रोजाना की तरह बांधा । गधा वहीं खड़ा रहा जैसे रोजाना की तरह बंधा हुआ हो । जाने का समय आया तो गधा वहाँ से हिला नहीं । तब धोबी को याद आया कि उसे दिखावे के लिए रस्सी खोलनी पड़ेगी । उसने रस्सी खोलने का नाटक किया तो गधा चल पड़ा । हम भी संसार की खूंटी से इसी तरह दिखावे में बंधे हुए हैं । हम सत्यता में बंधे नहीं हैं पर हमें भान होता है कि हम संसार से बंधे हुए हैं, ठीक उस गधे की तरह । माया ने हमें धोबी की तरह दिखावे में संसार से बांध रखा है ।

49. प्रभु ही करने वाले

प्रभु ही सबका पालन करते हैं । एक धनाढ्य व्यक्ति से लेकर एक चींटी तक का पालन-पोषण प्रभु ही करते हैं । हमें झूठा भ्रम या घमंड नहीं पालना चाहिए कि हमारी वजह से या हमारी कमाई से हमारा परिवार चल रहा है । एक नौकरी करने वाला व्यक्ति था । उसे घमंड था कि वह कमाता है तभी घर चलता है । एक बार पत्नी के साथ बिना मन के सत्संग में गया जहाँ संत कह रहे थे कि सबकी व्यवस्था प्रभु करते हैं । वह व्यक्ति सत्संग के बाद संत से उलझ गया कि मेरे परिवार की व्यवस्था तो मैं स्वयं करता हूँ । पत्नी जब सत्संग के बाद वापस घर चली तो संत ने उस व्यक्ति को रोका और कहा कि एक वर्ष के लिए बिना बताए कहीं चले जाओ और फिर वापस आकर देखना तब पता चलेगा कि सत्य क्या है । वह व्यक्ति बिना किसी को बताए रात को घर से चला गया । दूसरे दिन परिवार वालों ने खोजा तो वह नहीं मिला । फिर प्रभु की प्रेरणा से गांववालों ने उसके बड़े बेटे को एक सेठ के यहाँ नौकरी पर लगा दिया । प्रभु की प्रेरणा से गांववालों ने मिलकर रकम जोड़कर उसकी बेटी का विवाह, जो तय था, उसे अंजाम दिया । एक अन्य जमींदार ने उसके छोटे बेटे की पढ़ाई का खर्चा प्रभु प्रेरणा से उठा लिया

48. सत्संग का महत्व

काल भी प्रभु के भक्त का बुरा नहीं कर सकता । काल से संसार डरता है पर प्रभु के भक्त का काल भी आदर करता है । एक संत कथा सुनाते थे कि एक भक्त सत्संग के लिए घर से निकला । रास्ते में एक जगह ठोकर लगी, गिरा और कपड़ो में कीचड़ लग गया । वह दोबारा घर गया और कपड़े बदलकर आया । फिर वहीं पर गिरा और फिर कीचड़ से भरे कपड़े बदलने के लिए घर गया । तीसरी बार जब वहाँ पहुँचा तो एक पुरुष वहाँ पहुँचा और अपनी उंगली प क ड़कर उस व्यक्ति को सत्संग के पंडाल में ले जाकर पहुँचा दिया । भक्त ने उस पुरुष को धन्यवाद दिया और पूछा कि आप कौन हैं ? उस पुरुष ने कहा कि मैं काल हूँ और आपको लेने आया था पर जैसे ही आप सत्संग के लिए निकले प्रभु ने आपके पाप और आपकी मौत को टाल दिया । दूसरी बार आप वापस आए तो प्रभु ने आपके परिवार को पाप मुक्त कर दिया । इसलिए तीसरी बार मैं ने स्वयं आपको सत्संग तक लाकर छोड़ा नहीं तो तीसरी बार अगर आप गिरते और आप फिर सत्संग के लिए घर से कपड़े बदलकर लौटते तो प्रभु इतने दयालु है कि अब तो आपके पूरे गांव को पाप मुक्त कर देते । काल ने कहा कि सत्संग का इतना भारी महत्व है ।