जब हम प्रभु के प्रति समर्पित होते हैं तो कठिन-से-कठिन बेला में प्रभु हमारे साथ रहते हैं और हमारे मान की रक्षा करते हैं । एक संत एक गांव की कथा सुनाते थे । उस गांव में एक प्राचीन मंदिर था जिसमें दो पुजारी समाज की तरफ से नियुक्त थे । एक पुजारी की बेटी का विवाह तय हुआ पर विवाह सायंकाल का था और दोपहर की पूजा के बाद पहले वृद्ध पुजारी की तबीयत खराब हो गई । उसने शाम की पूजा और सेवा का भार उस पुजारी पर छोड़ा जिसकी बेटी का विवाह उसी दिन था । वह पुजारी बड़ा भक्त था और प्रभु उसके लिए सर्वदा सर्वप्रथम थे । वह विवाह की परवाह किए बिना और घर में किसी को कुछ बताएं बिना सायंकाल की पूजा और सेवा के लिए मंदिर में उपस्थित हो गया । सभी सेवा, पूजा और आरती बड़े चाव से की और प्रभु को शयन कराके रात दस बजे घर पहुँचा । उसने सोचा कि घर पर सब नाराज होंगे, उसे बुरा भला कहेंगे पर पत्नी ने बड़े प्रेम से गर्म भोजन परोसा । दूसरे दिन दोपहर की मंदिर की सेवा को विश्राम कर के घर आने पर पत्नी ने उसे शादी की फोटो दिखाई जो फोटोग्राफर घर देकर गया था । शादी की हर फोटो में पुजारीजी ने स्वयं को देखा । फोटो देखते ही उन्हें
प्रभु ने भक्ति करने के लिए मानव जीवन दिया है । भक्ति कर हम अपने मानव जीवन को अंतिम जन्म बना सकते हैं और आवागमन के चक्र से मुक्त हो प्रभु के श्रीकमलचरणों में सदैव के लिए स्थान पा सकते हैं । पर हम मानव जीवन में सबसे जरूरी भक्ति को छोड़कर सब कुछ करते हैं और इस तरह उस जन्म को व्यर्थ कर लेते हैं । एक सेठजी एक संत के शिष्य थे । सेठजी हरदम कहते थे कि सत्संग और भक्ति के लिए वे अपनी दैनिक दिनचर्या में समय नहीं निकाल पाते । एक बार संत उन सेठजी को साथ लेकर सुबह भ्रमण पर गए । रास्ते में गलियों में कुत्ते, गधे, सूअर आदि सब जानवर मिले । संत ने कहा कि ये सब भी किसी जन्म में मानव थे और इनमें से कोई इंजीनियर था, कोई डॉक्टर था, कोई व्यापारी था और आपकी तरह ये भी अप नी दिनचर्या में इतने व्यस्त रहते थे कि प्रभु के लिए समय नहीं निकाल पाए । काल ने इन्हें दंड देते हुए दो पैर से चार पैर वाला बना दिया । अब इनके पास समय-ही-समय है पर ये आवारा घूमते हैं क्योंकि इ नकी योनी में भक्ति और भजन संभव नहीं है। भक्ति और भजन केवल मानव योनी में ही संभव है और शास्त्रों का आदेश है कि संसार के करोड़ों का मों को छोड़क